SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लिए कमर कसी है, तब गुजराती पुरुषों में इतनी शक्ति कहा जो उसमें विघ्न डाल सके। मुना भतारक मोतीवाली मनाविवार जानकार है। इस लिए हम ५० मुन्दरलालीको मन्ना देने किये उनसे वह मंत्र जल्द सीराटेजिसके बदमे मेफोटोगकि विगत रहते भी वे ईडरके भधारक नन गये । उक्त मनमे आपकी नारी मनोकामनायें सिद्ध हो जायेगी। ____७. श्रुतपञ्चमी आई। हरसाल श्रुतपंचमी आती है और चली जाती है । जो सदा आती है उसकी परबार याद दिलानेकी माम नही क्या जरूरत है। जनपत्र सम्पादकोंको यह एक तरहका रोग ही हो गया है कि ये वैशास्त जेठ आया और लगे अपना वही पुराना राग आलपने । इन रागको सुनकर लोग और तो कुछ करते नहीं, अन्योंको शाडमुड़कर ठीकठाक करके रख देते हैं और इस आरभमें कुछ सूदम जीनको शरीरयातनासे मुक्त कर देते हैं ! इससे मै इस रागको पसन्द नहीं करता। अपने राम तो ठीक इससे उलटा कहते है कि भाई, इस श्रुतपंचमीके शगडेको छोडो; ये पढ़े लिखे लोग तुम्हारे गले जबर्दस्ती एक नया जरवा मढ रहे है। इन पुराने गले सड़े शास्त्रों में रक्खा ही क्या है जो इतनी 'मिहनत करते हो। यदि इनमें कुछ हो भी, तो उसे समझे कौन ? अपने लड़के तो बारहखड़ी, पहाड़े, हिसाब, किताब आदि सीखकर ही अपने कारोबारको मजेसे सँभाल लेते हैं और रहा धर्म, सो मंगल पढ़ । लेते हैं, पूजा जानते है, व्रत उपवास कर लेते है, हरियोंका त्याग तो कराना ही नहीं पड़ता है-स्वयं कर लेते हैं, फिर और क्या चाहिए? मेरी समझमें तो ये 'संसकीरत पराकरत' के शास्त्र पंडितोंको सौंप देना चाहिए, वे चाहे इनकी सुतपंचमी करें चाहे और कुछ करें। अपने
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy