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________________ ३०१ जीवनमे जो वाक्य अक्षरशः सत्य सिद्ध हुए है उनका स्मरण निरन्तर करते रहना। वे वाक्य ये हैं: जो दूसरोंको दुःख देता है वह मानो स्वयं आपको ही दुःख देता है और जो दूसरोंकी भलाई करता है, वह अपनी ही भलाई करता है। देहममत्वका परदा हटते ही स्वाभाविक सत्यका मार्ग प्राप्त हो जाता है। यदि तुम मेरे इन वचनोंको स्मरण रक्खोगे और उनके अनुसार चलनेका प्रयत्न करते रहागे तो अपनी मृत्युके समय भी तुम अच्छे कर्मोकी छायामें रहोगे और इससे तुम्हारा जीवात्मा तुम्हारे शुभ कामोंसे अमर हो जायगा। * दानवीर सेठ हुकमचन्दजीकी संस्थायें। इन्दोरके सुप्रसिद्ध सेठ श्रीमान् हुकमचन्दजीने अपनी चार लाखकी. रकमका निम्न लिखित कार्यों में बॅटबारा करनेका निश्चय किया है: १०००० ) तुक्कोगंज-इन्दोरके उदासीनाश्रमके लिए। ६५०००) स्वरूपचन्द हुकमचन्द दि० जैन महाविद्यालयकी इमारतके लिए। २०००००) उक्त विद्यालयके व्यवनिर्वाहके लिए। १५००० ) कंचनबाई दि० जैन श्राविकाश्रमकी इमारतके लिए। ८५०००) उक्त आश्रमके व्ययनिवाहके लिए। इसके साथ एक औषधालय भी रहेगा। * श्रीयुक्त प० फतेहचन्द कपूरचन्द लालनकृत 'श्रमण नारद' नामक गुजराती पुस्तकके आधारसे परिवर्तित करके गल्परूपमें लिखित।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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