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________________ २८६ सताया था-मुझे माफ कर । सचमुच ही में उसी अन्यायके फलसे सताया जा रहा हूँ। महादत्तके इस पश्चात्तापपर पुलिसने जरा भी व्यान न दिया; वह बराबर मार मारती रही। इतने ही में 'देवल' वहाँ आ पहुँचा और . उसने सबको आश्चर्यमें डालते हुए वह मुहरोकी वसनी पाण्डु जौहरीके -आगे रख दी। इसके बाद उसने उसे क्षमा किया और उसकी मगल कामना की। महादत्त छोड़ दिया गया। उसे अपने सेठपर बड़ा ही क्रोध आया। वह उसके पास एक क्षण भी न टहरा और न जाने कहोको चल दिया। उधर मल्लिकको खबर लगी कि देवलके पास एक गाड़ी अच्छे चावल हैं। इस लिए उसने उसी समय उसके पास पहुंचकर मुंहमांगा दाम देकर वे चावल खरीद लिये और अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार राजाके यहाँ भेज दिये। जितना मूल्य मिलनेकी देवलको स्वप्नमें भी आशा न थी, उतने मूल्यमें चावल बेचकर वह अपने गाँवको रवाना हो गया। पाण्डु भी अपने आदतियेकी विपति टली देखकर और अपनी खोई हुई बसनी पाकर बहुत प्रसन्न हुआ । वह सोचने लगा कि वह किसान यहाँ न आता, तो न मल्लिकका ही उद्धार होता और न मैं ही अपनी खोई हुई रकम पा सकता । वह किसान बडा ही ईमानदार और भला आदमी निकला । जिसको मैंने सताया उसीने मेरे साथ ऐसी सज्जनताका व्यवहार किया। पर एक साधारण अपढ़ किसानमें इतनी सज्जनता और उदारता कहाँसे आई १ उस श्रमण महास्माका ही यह प्रसाद समझना चाहिए। लोहेको सोना बनानेका प्रभाव पारसको छोड़कर और किस वस्तुमें हो सकता है ? यह सब सोचकर
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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