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________________ चाहिए । परन्तु इसमें जरा भी सफलता न हुई । क्योंकि उक्त मण्डली जो कुछ करना चाहती थी वह सव अन्यायपूर्वक । उसने साफ कह दिया था कि सभाके बहुमतको हम कुछ नहीं समझते । यदि तुम लडेको वोर्डिंगसे अलग न करोगे तो हम सभामें दंगा करेंगे और लडेको घरसे निकालकर बाहर कर देंगे। इसी मौकेपर मंडलीकी ओरसे एक विज्ञापन प्रकाशित किया गया था। उसमे लिखा था कि "लहेने अपनी भतीजीका व्याह शास्त्रविरुद्ध, रूढिविरुद्ध और सभाके प्रस्तावके विरुद्ध किया, इस लिए उन्हे सभाके कामसे अलग कर देना चाहिए।" इसपर लहे सा० ने कहा कि "चतुर्थ और पंचम जातिमें परस्पर विवाहसम्बन्ध होना चाहिए। इसे मैं अच्छा समझता हूँ। इसी लिए मैंने अपनी भतीजीका विवाह चतुर्थ जातिके लडकेके साथ किया है और * आगे भी मैं ऐसे विवाह करूँगा।सभा चाहे तो इस विषयमें अपनी प्रसन्नता या नाराजी प्रकट कर सकती है। इस कारणसे अथवा और किसी कारणसे यदि सभाको मेरी आवश्यकता न हो, तो मै बोर्डिंगका ही क्यों सभाकी सभासदीका भी सम्बन्ध तोड़ देनेके लिये तैयार हूँ।" लहेने अपना यह विचार सभाके समक्ष भी प्रकट कर दिया। परन्तु , सभाको यह मालूम हो चुका था, कि इस वखेडेका कारण चतुर्थ-पंचम विवाह नहीं किन्तु दश,बारहवर्षका पुराना वैर है और इस लिए विपक्षी.. गण लहे सा० को अलग करके उनकी जगह अपने एक मुखियाको न कि सभाके चुनावके अनुसार, किसी दूसरे योग्य पुरुषको-बिठाना चाहते हैं, इसलिए उसे, लाचार होकर इस ओर दुर्लक्ष्य करना पड़ा और अन्तमें पुलिसके-द्वारा गान्ति करानी पड़ी। इसके बाद सभाका कार्य कुशलतापूर्वक समाप्त हुआ। सभाने अबकी बार एक नया पाठ सीखा और ऐसे बखेडोसे बचनेके लिए उसने अपनी नियमावलीका
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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