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________________ २७ कर्मवीर। एक विद्वान् कहता है कि " डरपोक अपनी मौतसे पहले ही हजारों बार मर चुकते है पर वीर पुरुप एक ही वार मरता है।" वीरोंको लेनेके लिए मौत एक ही बार आती है और वह उन्हें सोनेके सिंहासन पर चढ़ाके अपने अमर धाममें ले जाती है; किन्तु होना चाहिए कर्मवीर । उसी वीरके गुणगानसे लेखककी लेखनी तीखी मानी जाने लगती है और कविकी कविता जीवित हो जाती है। वह वीर बाते नहीं बनाता बल्कि काम करता है और उसका काम ही। उसे एकदम संसारके सामने लाके खडा कर देता है। तमाम मनुष्य उसे अपना पूज्य मानते हैं और सब जातियाँ उसे देवता कहती है। बुद्ध धर्मके जमानेमें कोई नही जानता था कि एक मनुष्यका हृदय धार्मिक प्रेमकी आगसे धधक रहा है। उस समय कोई नहीं जानता था कि एक हृदयमें बड़ी बड़ी भीषण लपटें उठ रही है, किन्तु समय कुछ आगे बढा और संसारके सामने अकलङ्कदेवका शरीर आगया। इस कर्मवीरने ससारमें वह आग फूंक दी कि जो अब तक शान्त नही हुई और न होगी; क्योंकि यह उस कर्मवीरके हृदयकी सच्ची आग थी-यह आग-यह बिजली बडे बडे पहाड़ोंको भेदती हुई, नदि। योंको उलॉघती हुई और समाजोंको चमकाती हुई एक सिरेसे दूसरे - सिरे तक जा पहुँची। दूसरी आग अरबमें उस समय उठी थी, जब सब मनुष्य अज्ञानके गढ़ेमें गिरकर अत्याचारोंकी सीमा पर पहुंच चुके थे। फिर एक हृदयमें धार्मिक अग्नि जलने लगी और उस आगका स्फोट इतना भयङ्कर हुआ कि उससे संसारकी जडे हिल गई और अरबके नीरव जङ्गलोके रेतीले मैदानों, नदियों और पश्चिमोत्तर वायसे भी वे शब्द सुनाई देने लगे। ये कर्मवीर हजरत मुहम्मद थे जिनके
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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