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________________ २२१ प्रत्येक गृहस्थके यहाँ ऐसी पुस्तकका रहना आवश्यक है । पुस्तकका प्रूफ अच्छी तरहसे नहीं देखा गया इस लिए भापासम्बन्धिनी अशुद्धियॉ बहुत रह गई है। कागज भी हलका लगाया गया है। परन्तु पुस्तककी उपयोगिता देखते हुए ये दोष सर्वथा क्षम्य है । पं० श्री गिरधरशर्माको पुस्तकप्रणयनमें प्रवृत्त देखकर हमें बहुत प्रसन्नता हुई है । आशा है कि आपकी कलमसे हिन्दी साहित्यमें और भी अनेक ग्रन्थोंकी वृद्धि होगी। नवजीवन बुकडिपो, बनारससे हमें निम्नलिखित चार पुस्तके प्राप्त हुई है-- ५-६. धर्मशिक्षा प्रथम भाग और द्वितीय भाग- मूल्य चार आना और छह आना । कविराज पं० केशवदेव शास्त्री काशीके एक जोशीले विद्वान् है । हिन्दुओंमें नवीन जीवन डालनेके लिए आप बहुत प्रयत्न कर रहे है । वैदिक धर्मपर आपकी विशेष. आस्था है । वैदिक सिद्धान्तोंका प्रचार करनेके लिए इस समय आप अमेरिकामे घूम रहे हैं । ये दोनों पुस्तकें आपहीकी लिखी हुई है । दयानन्द हाईस्कूल काशीके विद्यार्थियोंकी ये पाठ्य पुस्तकें है। पहले भागमे मनुजीके बतलाये हुए धर्मके दशलक्षणो (धृति, क्षमा, दमन, अस्तेय, शौच, इन्द्रियनिग्रह,धी, विद्या, सत्य और अक्रोध)की व्याख्या है और वह बहुत अच्छे ढंगसे अनेक उदाहरण देते हुए की है । हमारी समझमे धर्मके उक्त लक्षण ऐसे है कि इनसे सब ही लोग लाभ उठा सकते हैं। दूसरे भागमें सदाचार निर्माणके मैत्री, करुणा, मुदता (प्रमोद ) और उपेक्षा ( माध्यस्थ) इन चार साधनोका विस्तारपूर्वक व्याख्यान है। जैनधर्ममें ये ही चार साधन चार भावनाओंके नामसे प्रसिद्ध हैं। इनसे विद्यार्थियोंके चरित्र पर सचमुच ही अच्छा प्रभाव पडेगा।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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