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________________ २०४ सकें। इसके लिए उन्हें किसी चतुर स्त्रीसे घरके काम काज अच्छी तरहसे सीखना चाहिए, रक्षकोके पास या पुस्तक समाचारपत्रोंके द्वारा यह जानना चाहिए कि आजकलके युवकोंका चिन्ताप्रवाह किस प्रणालीसे . बह रहा है और किस ओर जा रहा है, आरोग्यविज्ञान और शिशुशिक्षाविज्ञानकी सहज सरल पुस्तके पढना चाहिए और पुराणादि वर्मशास्त्रोके स्वाध्याय और व्रतपालनके द्वारा धर्मनिष्ठ होना चाहिए। इस प्रकारकी सुशिक्षिता कन्याओंके साथ विवाह करनेके लिए किसी प्रकारके आर्थिक लाभकी अपेक्षा रक्खे बिना बहुतसे शिक्षित वर उत्सुक होगे, इसमें जरा भी सन्देह नहीं है । यह बड़े ही दुःखकी बात है कि हम लोगोंमें बहुत ही कम लोग ऐसे है जो स्त्रीशिक्षाके सम्बन्धमे विचार करते है और उसके लिए कुछ यत्न करते हैं । इस समय उपयोगी पुस्तकें रचने और आदर्श कन्याविद्यालय स्थापित करनेके लिए प्रत्येक देशहितैषी व्यक्तिको उद्योग करना चाहिए। कन्याकी परीक्षा कर चुकनेपर उसके वंशका परिचय प्राप्त करना आवश्यक है। इस विषयमें प्राचीन विद्वानोंकी सम्मति सर्वथा आदरणीय है । जिस वशमें उन्माद, मूर्छा आदि वंशानुक्रमिक रोग है, जो वश मूर्ख और अधार्मिक है, उसमें धन होनेपर भी कभी विवाहसम्बन्ध न करना चाहिए। जिस वशमें अनेक पडितों और धर्मात्मा ओने जन्म लिया है, विवाहके लिए वही वश अच्छा और कुलीन है। __अन्तमें कन्यानिर्वाचनमें जो एक बड़ा भारी असुभीता है, उसका उल्लेख कर देना हम यहाँपर बहुत आवश्यक समझते हैं। इस समय हमारे देशमें चारों वर्गों के भीतर इतनी अधिक जातियों और उपजातियों बन गई है कि उनकी गणना करना कठिन हो गया है। हमारे जैनसमाजमें भी जातियों और उपजातियोंकी कमी नहीं है और इससे प्रत्येक ।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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