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________________ और 'कृष्णकान्तका बिल' नामक उपन्यासोंमे रूपज मोह और गुणजः प्रेमका विश्लेषण करके दिखलाया है कि स्त्रीके रूपकी अपेक्षा गुणका, मूल्य बहुत ही अधिक है। - इसके बाद कन्याकी शिक्षाके प्रबन्धमें विचार करना चाहिए । केवल पढ़ना जान लेनेसे शिक्षा नहीं होती। हमारी कन्यायें प्रायः ऐसे स्कूलों में शिक्षा पाती है जहाँ वे हमारी जातीय विशेषता और गौरवकी एक भी बात नहीं सीखती। जो अच्छी कन्यापाठशालायें या कन्याविद्यालय है वहाँ पढाईका खर्च अधिक है इस लिए दरिद्रताके कारण लोग उनमे पढ़ानेका प्रबन्ध नहीं कर सकते । बहुत लोग यह सोच कर भी रह जाते है कि लड़कीके विवाहमें हजार दो हजार रुपये लोंगे ही, तब उसको पढानेके लिए ऊपरसे और अधिक खर्च क्यों करें ? परन्तु अब उन्हें यह जाना लेना चाहिए कि आज कलके वर सुशिक्षित कन्याओंको बहुत पसन्द करते है इसलिए वे उन्हे मामूलीसे भी कम खर्च कराके खुशी खुशी लेनेकेलिए राजी हो सकते है, और इस तरह केवल खर्चकी ओर नज़र रखकर भी विचार किया जाय तो कन्याकी शिक्षाके लिए खर्च करना फिजूल खर्च नहीं कहा जा सकता। ___ हमारी कन्याओंको किस प्रकारकी शिक्षा मिलनी चाहिए, इस विविषयका विस्तारपूर्वक विवेचन करनेके लिए यहाँ स्थान नहीं है। तो भी संक्षेपत. यह कहा जा सकता सकता है कि स्कूलों और घरोंमे लडकियोंको ऐसी शिक्षा मिलना चाहिए जिससे वे विवाह होनेके पश्चात् आदर्श गृहणियाँ बन सके। एक ओर तो वे पति और दूसरे कुटुम्बी जनोंकी सेवा शुश्रूपा कर सकें और दूसरी ओर अपनी स-. न्तानको वैज्ञानिक प्रणालीके अनुसार लालित पालित और शिक्षित कर
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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