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________________ २०० पडता है कि "नर जो पैकरनी करे तो नारायण जाय।" प्रतिाल दशामें भी मनुप्य अपनी जाति, समाज और देशकी कसी और कितनी सेवा कर सकता है, यह बात इम चरितसे सीखने योग्य है। यद्यपि हमारे देशमें अमेरिकाके समान दासत्व नहीं है तथापि, यन. मान समयमें, अस्पृश्य जातिके पाच करोटमे अधिक मनन्य मामाजिक दासत्वका कठिन दुःख भोग रहे हैं। क्या हमारे यहाँ, वाशिंगटनके समान, इन लोगोंका उद्धार करनेके लिए कभी कोई महात्मा उत्पन्न होगा ? क्या इस देशकी शिक्षापद्धतिमें शारीरिक श्रमकी ओर ध्यान देकर कभी सुधार किया जायगा ? जिन लोगोने शिक्षाद्वारा अपने समाजकी सेवा करनेका निश्चय किया है क्या ये लोग उन तत्त्वोंपर उचित ध्यान देगे जिनके आधारपर टस्केजीकी सस्था काम कर रही है ?* कन्या-निर्वाचन । शायद ही कोई अभागा ऐसा हो, जिसे अपने जीवन मे कमसे कम एक बार किसी न किसीकी कन्याको देखनेके लिए न जाना पड़े। किन्तु वह क्या देखता है ? कन्याका रंग गोरा है या काला, ऑखे छोटी है या बड़ीं, नाक ऊँची है या बैठी इत्यादि । अधिक हुआ तो कोई यह भी पूछ लेता है कि कन्या पढ़ना लिखना जानती है या नहीं ? इसके उत्तरमें कन्याका पिता और कुछ नहीं तो यह अवश्य कह देता है कि लड़की घरका काम काज करना सीखी है । इसके बाद ही कन्या पसन्द हो जाने पर विवाहकी तैयारिया होने लगती है। फरवरीकी 'सरस्वती' के लेखका सार।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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