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________________ १९७ काममे उन्होंने बड़े बड़े कष्ट उठाये; परन्तु अन्तमें उनका प्रयत्न सफल हुए बिना न रहा। धन एकहा करनेके विषयमें वाशिंगटनके नीचे लिखे अनुभवसिद्ध नियम बड़े कामके है: १. तुम अपने कार्यके विषयमे अनेक व्यक्तियो और संस्थाओको अपना सारा हाल सुनाओ। यह हाल सुनानेमें तुम अपना गौरव समझो। तुम्हें जो कुछ कहना हो संक्षेपमें और साफ साफ कहो। २. परिणाम या फलके विषयमें निश्चिन्त रहो। ३. इस वातपर विश्वास रक्खो कि संस्थाका अन्तरंग जितना ही स्वच्छ, पवित्र और उपयोगी होगा उतना ही अधिक उसको लोकाश्रय भी मिलेगा। ४. धनी और गरीब दोनोंसे सहायता माँगो । सच्ची सहानुभूति - प्रकट करनेवाले सैकड़ों दाताओंके छोटे छोटे दानोंपर ही परोपकारके बडे बड़े काम होते हैं। ५. चन्दा एकट्ठा करते समय दाताओंकी सहानुभूति, सहायता और उपदेश प्राप्त करनेका यत्न करो। आत्मावलम्बन और परिश्रमसे धीरे धीरे टस्केजी संस्थाकी उन्नति होने लगी । सन् १८८१ में इस सस्थाकी थोडीसी जमीन, तीन इमारतें, एक शिक्षक और तीस विद्यार्थी थे । अब वहाँ १०६ इमारतें २,३५० एकड जमीन, और १५०० जानवर है । कृषिके उपयोगी । यत्रों और अन्य सामानकी कीमत ३८,८५, ६३९ रुपया है । वार्षिक आमदनी ९,००,००० रुपया है और कोषमे ६,४५००० रुपया जमा है। यह रकम घर घर भिक्षा मागकर एकहा की जाती है। इस समय सस्थाकी कुल जायदाद एक करोड़से अंधिककी है जिसका प्रबन्ध पंचोंद्वारा किया जाता है। शिक्षकोकी संख्या १८० और वि
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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