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________________ सिक सामग्री नहीं है। इनके भीतर पत्थरके सदूक मिले हैं जिसमें बौद्धोंके मृत शरीरोंकी भस्म रक्खी जाती थी। इन संदूकोंके ऊपर बहुतसे लेख खुदे हुए मिले हैं जिनसे बौद्धधर्मके प्रचारके विषयमें बहुतसी बातोंका परिचय मिला है। कहीं कहीं यह लेख सं ढकनोंके भीतरकी ओर केवल स्याहीसे ही लिखे मिले है। अभी हालमें तक्षशिला ( पजाब ) के खोदे जानेपर जो अन्वेषण हुए है वे डाक्टर मारशलने ४ सितम्बर १९१३ ई० को शिमलामें पंजाब ऐतिहासिक सोसाइटीको पढ़कर सुनाए थे। तक्षशिलाके टीलोंमें बहुतसे स्तूप और इमारतें मिली हैं जिनसे राजा कनिष्कके समयके सम्बधमे कुछ नवीन वातें हाथ लगी हैं। इन इमारतोंमेंसे कई सिक्के भी मिले हैं जिनसे भारतवपके इतिहासकी बहुतसी बातोंका परिचय मिला है। मुसलमानोंकी तो ऐसी बहुतसी इमारतें आगरा, देहली, सीकरी, वीजापुर इत्यादि स्थानोमें विद्यमान है जिनपर ऐतिहासिक लेख हैं। बिहार प्रांतके अंतर्गत गया जिलेमें बहुतसी गुफायें हैं जिन पर महाराजा अशोकके लेख मिले हैं। ऐसी गुफायें और भी कई स्थानोंमे हैं। कहीं इन गुफाओंमें चैत्यालय भी बने हैं। जूनागढ और उडीसाकी गुफाओंमें कई जैनलेख और प्रतिमायें मिली हैं जो जैनधर्मके लिए बड़े महत्त्वकी है। वैदिक, जैन और बौद्धधर्मसंवधी प्रतिमाओंपर सैकडों ही लेख मिलते हैं। श्रवणवेलगुलमें विंध्यगिरि पर्वतपर श्रीवाहबलि स्वामीकी एक विशाल मूर्ति हैं जिस पर एक बहुत प्राचीन शिलालेख है। धातु-अव तक सोना, चॉदी, तांबा, पीतल, लोहा इत्यादि अनेक धातुओंपर लेख मिल चुके हैं। इनमेंसे अधिकाश लेख ताम्रपत्रोंपर है। इन पत्रोंकी लम्बाई चौडाई २ इंचसे लेकर २॥ फुट तक पाई
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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