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________________ १५४ श्वेतांवर सम्पदायका ही है। दिगम्बरॉका इससे कोई सम्बंध नहीं है । और श्वेताम्बर सम्प्रदायका भी यह कोई सिद्धान्त ग्रंथ नहीं है बल्कि मात्र विवेकविलास है, जो कि एक मंत्रीसुतकी प्रसन्नताके लिए बनाया गया था । विवेकविलासकी संधियों और उसके उपर्युल्लिखित दो पद्यों (न० ३,९) में कुछ ग्रंथनामादिकका परिवर्तन करके ऐसे किसी व्याक्तने, जिसे इतना भी ज्ञान नहीं था कि दिगम्बर और श्वेताम्बरों द्वारा माने हुए अठारह दोषोंमें कितना भेद है, विवेकविलासका नाम 'कुन्दकुन्दश्रावकाचार' रक्खा है। और इस तरह पर इस नकली श्रावकाचारके द्वारा साक्षी आदि अपने किसी विशेष प्रयोजनको सिद्ध करनेकी चेष्टा की है। अस्तु । इसमें कोई सन्देह नहीं है कि जिस व्यक्तिने यह परिवर्तनकार्य किया है वह बड़ा ही धूर्त और दिगम्बर जैनसमाजका शत्रु था। परिवर्तनका यह कार्य कब और कहॉपर हुआ है इसका मुझे अभीतक ठीक निश्चय नहीं हुआ। परन्तु जहाँतका मैं समझता हूँ इस परिवर्तनको कुछ ज्यादह समय नहीं हुआ है और इसका विधाता जयपुर नगर है। ___ अन्तमें जैन विद्वानोंसे मेरा सविनय निवेदन है कि यदि उनमेसे किसीके पास कोई ऐसा प्रमाण मौजूद हो, जिससे यह ग्रंथ भगकु. दकुंदका बनाया हुआ सिद्ध हो सके तो वे खुशीसे बहुत शीघ्र उसे प्रकाशित कर देवें । अन्यथा उनका यह कर्तव्य होना चाहिए कि जिस भंडारमें यह ग्रंथ मौजूद हो, उस ग्रंथपर लिख दिया जाय कि 'यह ग्रंथ श्रीजिनचंद्राचार्यके शिष्य कुंदकुंदस्वामीका बनाया हुआ नहीं है। बल्कि यह ग्रंथ श्वेताम्बर जैनियोंका ' विवेकविलास' है। किसी धूर्तने ग्रंथकी संधियों और तीसरे व नौवें पद्यमें ग्रंथ नामादिक
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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