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________________ (१०) आठवें उल्लासमें जिनेंद्रदेवका स्वरूप वर्णन करते हुए अठारह दोपोंके नाम इस प्रकार दिये हैं: १ वीर्यान्तराय, २ भोगान्तराय, ३ उपभोगान्तराय, ४ दानान्तराय, ५ लाभान्तराय, ६ निद्रा, ७ भय, ८ अज्ञान, ९ जुगुप्सा, १० हास्य, ११ रति, १२ अरति, १३ राग, १४ द्वेष, १५ अचिरति, १६ काम, १७ शोक और १८ मिथ्यात्व । यथा: "चलभोगोपभोगानामुभयोनिलाभयोः । नान्तरायस्तथा निद्रा, भीरज्ञानं जुगुप्सनम् ॥२४१॥ हासो रत्यरती रागद्वेपावविरतिःस्मरः। शोको मिथ्यात्वमेतेऽष्टादशदोषा न यस्य सः ॥२४२॥" अठारह दोपोंके ये नाम श्वेताम्बर जैनियोंद्वारा ही माने गये हैं। प्रसिद्ध श्वेताम्बर साधु आत्मारामजीने भी इन्हीं अठारह दोषोंका उल्लेख अपने 'जैनतत्त्वादर्श' नामक ग्रंथके पृष्ठ ४ पर किया है। परन्तु दिगम्बर जैन सम्प्रदायमें जो अठारह दोष माने जाते है और जिनका बहुतसे दिगम्बर जैनग्रंथों में उल्लेख है उनके नाम इस प्रकार है: “ १ क्षुधा, २ तृपा, ३ भय, ४ द्वेष, ५ राग, ६ मोह, ७ चिन्ता, ८ जरा, ९ रोग, १० मृत्यु, ११ स्वेद, १२ खेद, १३ मद, १४ रति, १५ विस्मय, १६ जन्म, १७ निद्रा, और १८ विपाद।" दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही. सम्प्रदायोंकी इस अष्टादशदोषोंकी नामावलीमे बहुत बड़ा अन्तर है। सिर्फ निद्रा, भय, रति, राग और द्वेप, ये पाँच दोष ही दोनोमें एक रूपसे पाये जाते हैं। बाकी सव दोपोंका कथन परस्पर भिन्न भिन्न है और दोनोंके भिन्न भिन्न सिद्धान्तोंपर अवलम्बित है। इससे निःसन्देह कहना पड़ता है कि यह ग्रंथ -
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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