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________________ १४३ कुन्दकुन्दश्रावकाचारमें भी मौजूद हैं। इसके सिवा विवेकविलासकी एक । चारसौ पाँचसौ वर्षकी लिखी हुई प्राचीन प्रति बम्बईके जैनमदिरमें मौजूद है । * परन्तु कुंदकुदश्रावकाचारकी कोई प्राचीन प्रति नहीं मिलती। इन सब बातोंको छोड़ कर, खुद ग्रंथका साहित्य भी इस वातका साक्षी नहीं है कि यह ग्रंथ भगवरकुंदकुंदाचार्यका बनाया हुआ है। कुंदकुंदस्वामीकी लेखनप्रणाली उनकी कथन शैली-कुछ और ही ढंगकी है; और उनके विचार कुछ और ही छटाको लिये हुए होते है । भगवत्कुंदकुंदके जितने प्रथ अभी तक उपलब्ध हुए है वे सब प्राकृत भाषामें है । परन्तु इस श्रावकाचारकी भापा सस्कृत है; समझमें नहीं आता कि जब भगवत्कदकुंदने बारीकसे बारीक, गूढसे गूढ और सुगम ग्रंथोंको भी प्राकृत भाषामें रचा है, जो उस समयके लिए उपयोगी भापा थी तब वे एक इसी, साधारण गृहस्थोके लिए बनाये हुए, ग्रंथको संस्कृत भापामें क्यों रचते? परन्तु इसे रहने दीजिए। जैन समाजमें आजकल जो भगवत्कुंदकुंदके निर्माण किये हुए समयसार, प्रवचनसारादि ग्रंथ प्रचलित है उनमेंसे किसी भी ग्रंथकी आदिमें कुदकुंद स्वामीने अपने गुरु 'जिनचंद्राचार्य' को नमस्काररूप मंगलाचरण नहीं किया है। परन्तु श्रावकाचारके, ऊपर उद्धृत किये हुए, तीसरे पद्यमें 'वन्दे जिनविधुं गुरुम् ' इस पदके द्वारा जिनचंद्र' गुरुको नमस्कार रूप मंगलाचरण पाया जाता है । कुंदकुंदस्वामीके ग्रथोंमें आम तौर पर एक पद्यका मंगलाचरण है। सिर्फ 'प्रवचनसार ' में पॉच पद्योंका मगलाचरण मिलता है। परन्तु इस पाँच पद्योंके विशेष मगलाचरणमे भी जिनचंद्रगुरुको नमस्कार नहीं किया _ विवेकविलासकी इस प्राचीन प्रतिका समाचार अभी हालमें मुझे अपने एक मित्र द्वारा मालूम हुआ है । -
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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