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________________ १४२ 'विवेकविलास' रक्खा है; और इस प्रकारसे दूसरे विद्वानके इम प्रथको अपनाया हे अथवा पहले विवेकविलाम ही मौजूद था और किसी व्यक्तिने उनकी इस प्रकारसे नकल करके उसका नाम 'कुटकुद श्रावकाचार ' रख छोड़ा है; और इस तरहपर अपने क्षुद्र विचारोंसे या अपने किसी गुप्त अभिप्रायकी सिद्धिके लिए इन भगवत्कुदकुदके नामसे प्रसिद्ध करना चाहा है। यदि कुदकुदश्रावकाचारको, वास्तवमें जिनचंद्राचार्यके शिष्य श्रीकुदकुदस्वामीका बनाया हुआ माना जाय, तब यह कहना, ही होगा कि विवेकविलास उसी परसे नकल किया गया है। क्यों कि भगवत्कुंदकुदाचार्य जिनदत्तसूरिसे एक हजार वर्षसे भी अविक काल पहले हो चुके हैं । परन्तु ऐसा मानने और कहनेका कोई साधन नहीं है। कुदकुदश्रावकाचारमें श्रीकुदकुदस्वामी और उनके गुरुका नामोलेख होनेके सिवा और कहीं भी इस विषयका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं होता, जिससे निश्चय किया जाय कि यह प्रय वास्तवमें भगवत्कुदकुदाचार्यका ही बनाया हुआ है । कुदकुदस्वामीके बाद होनेवाले किसी भी माननीय आचार्यकी कृतिमें इस श्रावकाचारका कहीं नामोल्लेख तक नहीं मिलता, प्रत्युत इसके विवेकविलासका उल्लेख जरूर पाया जाता है। जिनदत्तसूरिके समकालीन या उनसे कुछ ही काल बाद होने वाले वैदिकधर्मावलम्बी विद्वान् श्रीमाधवाचार्यने अपने 'सर्वदर्शनसंग्रह' नामके प्रथमें विवेकविलासका उल्लेख किया है और उसमें वौद्धदर्शन तथा आईतदर्शनसम्बंधी २३ श्लोक विवेकविलास और जिदत्तसूरिके हवालेसे उद्धृत किये है। ये सव श्लोक १ देखो ' सर्वदर्शनसग्रह ' पृष्ठ ३८-७२ श्रीव्यकटेश्वरछापसाना वम्बई द्वारा सवत् १९६२ का छपा हुआ।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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