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________________ - , ज़रूरत। सनातन जैन ग्रंथमालामें जो संस्कृत ग्रंथ छपते है वे हस्तलिखित कई शुद्ध प्रतियोंके विना शुद्ध नहीं छप सकते इस लिये भंडारोंसे निकाल कर जो महाशय नीचे लिखे ग्रंथोंकी एक २ प्रति (जहां तक हो शुद्ध और अति प्राचीन हो) भेजेंगे तो संस्थापर बड़ी दया होगी। ग्रंथ छप जानेपर मूल प्रति वैसीकी वैसी वापिस भेज दी जायगी। और वे चाहेंगे तो दो प्रति या अधिक प्रति मंदिरोंमें विराजमान करनेके लिये छपी हुई भेज देंगे। प्राचीन ग्रंथ वापिस आनेमें संदेह हो तो हम उसके लिये डिपाजिटमें रुपया जमा करा देंगे। ग्रंथ रजिष्टर्ड पार्सलमें गत्ते वगैरह लगा कर बड़े यत्नसे भेजना चाहिये जिससे पत्रे टूटें नहीं। . ग्रंथोंके नाम। १ राजवार्तिकजी मूल सस्कृत अकलक देवकृत २ समयसारजी आत्मख्यातिटीका अमृतचद्र सूरिकृत ३ समयसार तात्पर्यय वृत्ति सहित ४ समयसारके कलशोंकी संस्कृत टीका ५ समयसारके कलशोंकी सान्वयार्थ पुरानी भाषाकी बचनिका ६ जैनेंद्र व्याकरणकी सोमदेवकृत शब्दार्णवचद्रिका (लघुवृत्ति) ७ जैनेंद्र महावृत्ति अति प्राचीन प्रति ८ प्राकृत व्याकरण भट्टारक शुभचन्द्रकृत स्वोपज्ञ टीकासह ९ औदार्य चिंतामणि (प्राकृतव्याकरण) श्रुतसागरकृत १० पद्मपुराण रविषेणाचार्यकृत ११ शाकटायनकी चिंतामणिटीका: .१२ शाकटायनकी अमोधवृत्ति टीका (ताडपत्री) इन सबकी लिपी चाहे कर्णाटकी द्राविडी नागरी चाहे जैसी भेजना चाहिए। प्रार्थी पन्नालाल बाकलीवाल ज्यवस्थापक-भारतीय जैनसिद्धांतप्रकाशिनी सस्था बनारस सिटी।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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