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________________ १२० देनेकी चिन्ता करनी पड़े । हम यह नहीं कह सकते कि जिन्हें पदवियाँ दी गई है वे योग्य नहीं है; नहीं, परन्तु यह अवश्य है कि पदवियाँ देकर हमने एक तरहके आदर्श लोगोंके सामने खड़े कर दिये है। कि हमारे आदर्श ये है। इतना होते ही हम कृतकृत्य हो सकते है। और यह बहुत ही बुरी बात है। हमारे आदर्श पुरुप बहुत ही ऊंचे होने चाहिए और रात दिन अपने कर्तव्य करते हुए उत्कण्ठाके साथ हमें देखते रहना चाहिए कि ऐसे महात्माओंके जन्मसे हमारा देश कब पवित्र होता है। यदि हम वर्तमान उपाधिधारियोंसे ही तप्त हो गये तो सब हो चुका; हमे अपनसे और अधिक आशा न रखनी चाहिए । इस समय हमें दूसरे समाजोंके तथा सर्वसाधारणके नेताओंको देखना चाहिए कि उन्हें कितनी पदवियों दी गई है। मान्यवर तिलक, मि० गोखले, लाला लाजपतराय, लाला हंसराज, श्रीयुक्त गाँधी आदि आदर्श पुरुषोंको बतलाइए कितनी पदवियों दी गई है ? कई महाशयोंका यह कथन है कि हमारा समाज अभी औरोंसे बहुत पीछे है, इस लिए उसमें जो काम करनेवाले है उनका सत्कार करके उन्हें उत्साहित करना चाहिए। परन्तु सच पूछा जाय तो यह पालिसी अच्छी नहीं । लोभसे या ऐहिक अभिमान पुष्ट करके जो लोग तैयार किये जायेंगे वे उनसे कदापि अच्छे और ऊंचे नहीं हो सकते जो अपना कर्तव्य समझ कर, समाजसेवाको अपना पवित्र कर्म मानकर काम करते हैं। जिसको पदवी दी जाती है उससे मानो कह दिया जाता है कि तुम अपना काम कर चुके, कृतकृत्य हो चुके, अब तुम्हें कुछ भी करना बाकी नहीं है। आशा है कि हमारे इन थोडेसे शब्दोंपर पदवी देनेवाले और लेनेवाले दोनों ही कृपादृष्टि करेंगे और आगे जिससे यह पदवियोंका लोभ वढने न पावे इसकी उचित व्यवस्था करेंगे।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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