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________________ - - -- 达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达达: जगतपाल जै भवसरोजगन प्रात काल ॥२॥ जै पंचमहावृतगजसवार । लै त्यागभावदलवल || सु लार ॥ जै धीरजको दलपति बनाय । सत्ताछितिमह रनको मचाय ॥३॥ धरि रतन तीन तिहुं शक्तिहाथ । दशधरमकवच तपटोप माथ ॥ जै शुकलध्यानकर खड़गधार । लल| कारे आठौं अरि प्रचार ॥ ४॥ तामैं सबको पति मोहचंड। ताकों तत छिन करि सहस a खंड ॥ फिर भानदरसप्रत्यूह हान । निजगुनगढ लीनों अचल थान ॥ ५॥ शुचि ज्ञान दरस | सुख वीर्य सार, हुव समवसरणरचना अपार ॥ तित भाषे तत्व अनेक धार। जाकों सुनि भव्य हिये विचार ॥६॥ निजरूप लह्यौ आनंदकार। भ्रम दूरकरनकों अतिउदार ॥ पुनि नयप्रमाननिच्छेपसार । दरसायो करि संशयप्रहार ॥७॥ तामैं प्रमान जुगभेद एव । परतच्छ परोछ रज सुमेव ॥ तामैं प्रतच्छके भेद दोय। पहिलो है संविवहार सोय ॥ ८॥ ताके जुगभेद विराजमान । मति श्रुति सोहैं सुदर महान ॥ है परमारथ दुतियो प्रतच्छ । हैं भेद जुगम तामाहिं दच्छ ॥ इक एकदेश इक सर्वदेश इकदेश उभैविधिसहित वेश ॥ घर अवधि सु मनपरजै विचार । है सकलदेश केवल अपार ॥ १०॥ चरअचर लखत जुगपत पतच्छ । निरद्धदरहित परपंचपच्छ॥ पुनि है परोच्छमह पंच भेद । समिरति अरु प्रतिभिज्ञानवेद ॥ ११ ॥ पुनि तरक और अनुमान मान । आगमजुत पन अव नय वखान ॥ नैगम संग्रह व्यौहार गूढ़। रिजुसूत्र शब्द अरु समभिरूढ़ ॥ १२॥ पुनि एवंभूत सु सप्त एम । नय कहे जिनेसुर - kekutekuttituteketatuetstatuteketutekststatstatutetotstattats
SR No.010717
Book TitleVartaman Chovisi Pooja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVrundavandas
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1985
Total Pages177
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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