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________________ tattatotkothtotretrkstartertstatestosatasteststate.ke.seke पंडित हो। तुम ही भवभावविहंडित हो ॥२॥ हरिवंशसरोजनमो रवि हो। बलवंत महंत तुम ही कवि हो ॥ लहि केवल धर्मप्रकाश कियौ। अवलों सोई मारगराजति यौ॥३॥ पुनि आप तने गुनमाहिं सही। सुर मग्न रहैं जितने सव ही ॥- तिनकी वनिता गुन गावत हैं। लय माननिसों मनभावत हैं ॥४॥ पुनि नाचत रंग उमंग भरी। तुअ भक्तिविषै पग येम धरी ॥ झननं झननं झननं छननं । सुरलेत तहाँ तननं तननं ॥५॥ घननं घननं घनघंट बजे। दूमद्दमन्द मिरदंग सजै॥ गगनोगनगर्भगता सुगता। ततता ततता अतता वितता ॥६॥ धृगतां धृगतां गति वाजत है। सुरताल रसाल जु छाजत है॥ सननं सननं सननं नभमैं । इकरूप अनेक जु धारि भमैं ॥७॥ कइ नारि सु वीन वजावति हैं। तुमरो जस उजल गावति हैं ॥ करतालविषे करताल धरें। सुरताल विशाल जु नाद करें ॥८॥ इन आदि अनेक उछाहभरी। सुरिभक्ति करें प्रभुजी तुमरी ॥ तुमही सब विघ्नविनाशन हो। तुमही निज आनंद भासन हो। तुमही चितचिंतितदायक हौ । जगमाहिं तुमी सब लायक हौ। तुमरे पनमङ्गलमाहिं सही। जिय उत्तम पुन्नलियो सब ही ॥ हमको तुमरी सरनागत है। तुमरे गुनमे मन पागत है ॥ ११ ॥ प्रभु मोहिय आप सदा बसिये। जवलो वसुकर्म नहीं नसिये ॥ तवलो तुम ध्यान हिये वरतो । तवलो श्रुतचिंतन चित्त रतो ॥ २२ ॥ तवलो तब चारित चाहतु हों। तबलो शुभ भाव सुगाहतु हों॥ तवलों सतसंगति नित्त रहौ । तबलों मम संजम चित्त गहौ ॥ १३ ॥ जबलों नहीं नाश करो अरिकों। शिवनारि वरों समता धरिको ॥ यह यो तयलों हमको जिनजी । हम जाचतु हैं इतनी सुनजी ॥१४॥ DESIZEToplateletterst.totatatatutetxtetatest-tetetatusxxx
SR No.010717
Book TitleVartaman Chovisi Pooja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVrundavandas
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1985
Total Pages177
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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