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________________ । सो मनमथभंजनहेत, पूजों पद थारे श्री०॥४॥ ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति० ॥४॥ रसरज्जत सज्जत सद्य, मज्जत थार भरी। पद जज्जत रज्जत अद्य, भज्जत भूख अरी ॥श्री०॥५॥ ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीति० ॥५॥ तमखंडित मंडितनेह, दीपक जोवत हों॥ तुम पदतर हे सुखगेह, भ्रमतम खोवत हों॥ श्री०॥६॥ ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति० ॥६॥ हरिचंदन अगर कपूर, चूर सुगन्ध करा। तुम पदतर खेवत भूरि, आठों कम जरा ॥ श्री०॥७॥ ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति० ॥७॥ रितुफल कलवजित लाय, कंचनथार भरा। शिव फलहित हे जिनराय, तुमढिग भेट धरा श्री॥८॥ ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८॥ tatest++ *stsets33333totstort-trakazz33333329232222 -
SR No.010717
Book TitleVartaman Chovisi Pooja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVrundavandas
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1985
Total Pages177
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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