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________________ %3 ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्याहा ॥ पुंडरीकतृणन्द्र मको आदिक, सुमन सुगंधितलाय । दर्पकमनमथभंजनकारन जजहुं चरन लवलाय ॥दा.॥४॥ ॐ हीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥ घेवर बावर खाजे साजे, ताजे, तुरित मँगाय । क्षुधावेदनी नाश करनको, जजहुँ चरन उमगाय॥ दाता०॥५॥ ॐ हीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वामीति स्वाहा ॥ कनकदीपनवनीत पूरकर, उज्जल जोति जगाय । तिमिरमोहनाशक तुमकोंलखि, जजहुंचरन हुलसाय॥दा०॥६॥ ॐ हीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ दशविध गंध मँगाय मनोहर, गुंजत अलिगन आय । दशोंबंध जारनके कारन, खेवों तुमढिग लाय ॥ दा० ॥७॥ ॐ हीं श्रोनेमिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ सुरसवरन रसनामनभावन, पावन फल सु मॅगाय । 科所好htt外好¢¢¢¢林丹丹丹丹丹丹丹丹丹丹格格杯杯杯"
SR No.010717
Book TitleVartaman Chovisi Pooja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVrundavandas
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1985
Total Pages177
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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