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________________ वृन्दावनदेवीदास-पदावली। रतत्रय निज निधिके दायक, कृपासिंधु सब विघनविनायका॥३॥ देवीवृंद कहत कर जोरी, हरो प्रभू भवबाधा मोरी ॥ ४ ॥ नेमी व्रतधारी, अब क्या करूंरी । नेमी०॥ टेक ॥ * मोहि त्याग पिय गये गिरनार,वरवेको शिवसुंदर नार। नेमी०१५ मोहि न भावत भोगविलास, मोमन वसतप्रभूके पास। नेमी०२१ खामि तजी जब राजसमाज,तब मोहि कौन भौनसो काजाने०३१ राजमती प्रभुके ढिग जाय, दीच्छा धारी मनवचकाय । नेमी०४१ * देवीवृंद नमत शिर नाय, मेरो भवभय देहु मिटाय । नेमी०५, मलार। नेमि चरनचित राजुल धरिया, जाय चढ़ी गिरनारिपहरिया।टेक भूपन त्यागि शीलवतभूपित. पंचमहाव्रत दुद्धर चरिया। ने० १, आतमज्ञान ध्यान अनुभवरस,पान करत उर आनंद भरियाने देविद नत नित कर जोरै, जयवंती एका अवतरियानेमि०३ ॥ मलार। गोरि त्यागि नेमी मुनि भये. क्या अपराध हमार ॥ टंक ॥ या जा समाजमों. आये सहपग्विार । पगम्य मुनि अंगग भरि बाय न गिरनार । मारि० ॥१ प्रमोग जोगनपि. बमिता विपिन मेलार । दिगोगनय त्यानिफ गयो पद अविकार महिला " httrakanterartraitAR
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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