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________________ पदावली। शेठसुअन घर निधि भरी, दुखद्वंद विदारे । पीर चंदनाकी हरी, किये जय जयकारे । ऐसी० ॥२॥ शूली सिंहासन कियो, ततकाल उवारे। सुमनमाल किय सांपतें, यह सुजस तिहारे ।ऐसी० ॥३॥ वारिषेणके खड्गको, किय कुसुमित हारे। गेठ सुअनको विष हरयो, आनंद बढ़ारे । ऐसी० ॥४॥ सिह कोल कपि न्यौलका, कल्यान किया रे। औ अनन्त जगजन्तको, भवसागर तारे । ऐसी० ॥५॥ । मेरी वार अवार करी, अब कारन क्या रे। । तुहीं मोहि अवलंब है, सुनि प्रानपियारे । ऐसी० ॥६॥ । राग दोष मद मोहका, तुम नाश किया रे । 4 तदपि वृंदकी आशके, तुम पूरनहारे । ऐसी० ॥ ७॥ आदिपुराणस्तुति। आदिपुरान सुनो भव कानन ॥ टेक ॥ । मिथ्यामतगयंद गंजनको, यह पुरान सांचो पंचानन ॥ आ०॥ * सुरगमुक्तिको मग दरसावत,भविकजीवको भवभयमानन||आ०॥ * वृषभदेवको यह चरित्र जो, इंद्र अलापत तननन तानन ॥ आ०॥ विघनविनाशन मंगलकारी, यों वरना मुनिवृंद प्रधानन आ० ॥ प्रथम वेदमें है प्रधान यह, क्रियाभेद जहँ कही विधानन ॥ आ०॥ जिनसेनाचारजकविंदने,यह पुरान भाषा अघहानन ॥ आ०॥ वृंदावन ताको रस चाखत,जो सवनिगमागमको आनन ॥आ०॥
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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