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________________ १५२ वृन्दावनविलास सोमासों जब शपथ लेनको, घटमहँ विषधर धार । तब तुमको उर सुमर सतीने, निजकर दीनों डार। सुमनमाल कर डारी हो । प्रमु० ॥३॥ सिंधुमाहि श्रीपालतियासों, शेठ अधममतिधार । तब तहँ सती चितारी तुमको, सुन ली तासु पुकार । सब दुखद्वंद विदारी हो । प्रमु०॥४॥ सती चंदनाके ऊपर जब, आयो संकट भार । श्रीमतवीर जिनेसुरजी तब, कीनों जैजैकार। तिहुं जग जस विसतारी हो । प्रमु० ॥५॥ दारिद दुखते पीड़ित है करि, एक सेठ मतिधार। तब तुमको करुना करि टेरी, सुन लीनी तिहॅ बार । सुखसंपति विसतारी हो । प्रमु० ॥ ६॥ शूलीतै सिहासन कीनों, खड्ग सुमनको हार । ऐसे आप अनेक भगतको, दीनों संकट टार । अब मेरी है वारी हो । प्रभु० ॥७॥ रागादिक विन अमल अचल तुम, देव जगतहितकार। भविकबुंदकी विथा निवारो, अपनी ओर निहार । हो मुद मंगलकारी हो । प्रमु०॥ ८॥ ऐसी तोहि न चाहिये, जिनराज पियारे। मो दुखद्वंद निकंदमें, क्यों वार किया रे ॥ टेक॥ तब पावकतै जल कियो, सिय संकट टारे। द्रुपदी चीर बढ़ा दियो, जदु सभामझारे । ऐसी० ॥१॥ ।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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