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________________ पदावली। तुम अधम उधारनका विरद धरो। मैं चेरो प्रभु तेरो मेरो दुरित दरो ॥२॥ भविवृंदकी विधीको तुम जानत खरो। दुखद्वंदको निकंदकै अनंदको भरो ॥ ३ ॥ ___ राग जंतवा । (बनारसी बोलीमें) तुम त्रिभुवनपति तारनतरन हो, हमरी खबरिया किमि विसरावल हो जी ॥ टेक ॥ हमहिं शरन तुव चरन कमलकी हो, करहु कृपा बहु दुखपावल हो जी । तुम० ॥ १॥ अगम अतट भव उदधि उधारन हो, तुमरी विरदियां हम सुन पावल हो जी । तुम०॥२॥ जप तप संजम दान दयानिधि हो, हमसों कछू न अब बनि आवल हो । तुम० ॥ ३॥ अपनि विरद लखि तारो जगपतिजी हो, भविकवृंद तुव गुनगावल हो जी । तुम० ॥ ४ ॥ TAAST मलार। निशदिन श्रीजिन मोहि अधार ॥ टेक ॥ । जिनके चरनकमलको सेवत, संकट कटत अपार । निश०॥१॥ जिनको वचन सुधारस गर्मित, मेटत कुमति विकार । निश * भव आताप बुझावनको है, महामेघ जलधार । निश० ॥३॥
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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