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________________ gRRRRRRRRRR-*-* वृन्दावनविलास निर्विष तासु कियो तहँ बालक, जागि उठ्यो जनु सेज सवेरी। मोहि पुकारत बार भई अब, श्रीपतिजी पत राखहु मेरी॥३५॥ अंजन चोर महामति घोरपै, कीन्हों कृपा करुनाकर नामी।। *तायो तुरंत अहो भगवंत, वखानत संत सुधारस नामी॥ और अनेक अपावनकों, गति पावन दीन्हीं जिनेश्वर खामी ।। क्यों न हो हमरो दुखदीरघ, हे जिनकुंजर अंतरजामी ॥३६॥ * कूकर शूकर बानर नाहर, नेवर आदि पशू अविचारी। * दीन्हों तिन्हें सुरधाम दयानिधि, वेद पुराननमाहिं पुकारी ॥ । मै अति दीन अधीन भयो, तुमसों यह टेरतु हों त्रिपुरारी । त्याग विलंब करो करनाअव,श्रीपतिजी पतराखो हमारी ॥३७॥ हो करुनाकर हो कमलावर, हो जिनकुंजर अंतरजामी। * दासनके दुख देखत ही तुम, कीन्हीं सहाय दयानिधि नामी मोपर पीर अपार परी, सो निहारत हो कि नहीं अमिरामी।। लीजे उवार हमें इहि बार, अहो सुखकार जिनेश्वर खामी॥३८३ * दारिदकंदलि-काननको तुम, कुंजर हो जिन कुंजरगामी।। * विनदवानलको वरवारिद, हो सुख शारद अंतरजामी ॥ सेवकके कलपद्रुम हो, सरवारथसिद्धिपदायक नामी। मोपर पीर अपार निहार, द्रवौ अबहे वृषभेश्वर खामी ॥ ३९॥॥ * दूषण दोषि अवर्ण निवर्णि, विवर्ण विवर्णित वस्तुविधाना। * ग्रंथनिग्रंथनिग्रंथपती, निरग्रन्थयती नितधारत ध्याना ॥ विन विनिम्न कियौ तिहिते, पदपावसी शिवपद्म सुजाना । हो सर्वज्ञ दयानिधि तज्ञ, द्रवौ मुझ अज्ञपै हे भगवाना ॥ ४०॥1
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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