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________________ वृन्दावनविलास * सागरमध्य परे शिरिपाल, कुचाल करी जब शेठ तबेरी।। * पावन नाम जप्यो अभिराम, जो तारतु है भवसिंधु सबेरी ॥ ताहि उवार लियो सुखकार, सो राज कियो फिर मुक्ति वरेरी।। * आज विलंवको कारन कौन है, श्रीपतिजी पत राखहु मेरी॥२५॥ * शेठ सुबुद्ध श्रीधन्नाविशुद्धकों, पापिन वापीविषै जव गेरी। नाम अधार रह्यो तिहिं वार, पुकारत आरत तासु निबेरी ॥ 1वेद उचारत आरत मंजन, वत्सल लच्छन है प्रमु तेरी।। *आज विलंवको कारन कौन है, श्रीपतिजी पत राखहु मेरी२६/ * श्रीश्रुतसागर ज्ञान उजागर, सागरसों गुनरत्न भरेरी। हारिगयो तिनसों वलि वादमें, मारनको निशि शस्त्र गहेरी ॥ शासन जक्षप्रतक्ष तहाँ, मुनिरक्षक व्है उपसर्ग निवेरी। । * क्यों नहरोहमरी यह आपति, श्रीपतिजी पत राखहु मेरी॥२७१ * श्रीजिनवीर विराजै जवै, विपुलाचलपै सुनिके सुरभेरी। मीडक जात लिये जलजात, प्रफुल्लितगात सुभक्ति घरेरी ॥ । दंतिपत मरते तुरित तिहिं, कीन्हों प्रभा सुर देव बड़ेरी।। मो दुख देख द्रवौ किन साहिव, श्रीपतिजी पत राखहु मेरी॥२८॥ * वानर जात पशू अवदात, विख्यातको वान लग्यो जिहि बेरी। देख दुखी तिहिं श्रीगुरुदेव, सुनाय दियो नवकार तवेरी ॥ होत भयो ततकाल महोदधि, देव महाबल रिद्धि धरेरी। मोपर क्योंन करो करुणा, अव श्रीपतिजी पत राखहु मेरी॥२९॥ * आम चढ़ाय सुआ सुख पाय, भयो सुर जाय विमान चरी।। मेंडक । २ कमल।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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