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________________ संकटमोचन । NA । जब सेठके नंदनको डसा नागने कारा । . उस वक्त तुमें पीरमें धरि धीर पुकारा ॥ तत्काल ही उस बालका विष भूरि उतारा । है वह जाग उठा सोके जनों सेज सकारा ॥ हो० ॥२१॥ सूवेने में आनिके फल आम चढ़ाया * मेंडक ले चला फूल भरा भक्तिका भाया ॥ तुम दोनोंको अभिराम सुरगधाम बसाया। हम आपसे दातारको लखि आज ही पाया ॥ हो ॥२२॥ कपि कोल सिंह नेवल अज बैल विचारे । तिरजच जिन्हें रंच न था बोध विचारे ॥ इत्यादिको सुरधाम दे शिवधाममें धारे। हम आपसे दातारको प्रभु आज निहारे ॥ हो० ॥२३॥ तुम ही अनंत जंतका भय भीर निवारा । वेदो पुरानमें गुरू गणधरने उचारा ।। हम आपके शरनागतमें आके पुकारा । तुम हो प्रतच्छ कल्पवृच्छ ईच्छितकारा ॥ हो० ॥२४॥ प्रभुभक्ति व्यक्त जक्त भुक्त मुक्तिकी दानी। , आनंदकंद बूंदको है मुक्त निदानी ॥ * मोहि दीन जान दीनबंधु पातक भानी । * दुखसिंधुतै उवार अहो अंतरज्ञानी ॥ हो० ॥ २५॥ । करुनानिधानवानको अब क्यों न निहारो। १ दानी अनंतदानके दाता हो समारो॥
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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