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________________ वृन्दावनविलास यह बात हमारे कान परी, तव आन तुमारी सरन गहीं। ! * क्यों मेरी बार विलंब करो, जिननाथ कहो वह बात सही।श्री * काहूको भोग मनोग करो, काहूको स्वर्गविमाना है। * काहूको नागनरेशपती, काहूको ऋद्धि निधाना है ॥ : अब मोपर क्यों न कृपा करते, यह क्या अंधेर जमाना है। इनसाफ करो मत देर करो, सुखवृंद भरो भगवाना है ॥श्री ! खल कर्म मुझे हैरान किया, तब तुमसों आन पुकारा है।। । तुम हो समरस्थ नै न्याव करो, तब बंदेका क्या चाग है ॥ खल घालक पालक बालकका, नृपनीति यही जगसाग है। * तुम नीतनिपुन त्रैलोकपती, तुमही लगि दौर हमारा है ।। १० । जबसे तुमसे पहिचान भई, तबसे तुमहीको माना है। तुमरे ही शासनका स्वामी ! हमको झरना मग्माना है ।। * जिनको तुमरी शरनागत है. तिनसों जमराज उगना है। यह सुजस तुम्हारे साँचेका. जस गावत वेदपुराना । जिसने तुमसे दिलदर्द कहा, तिमका गुमने दुगना है। अघ छोटा मोटा नाशि नुस्ति. गुग दिया निमें मन (क) कपिने इम पाठसे परि म मम : लिगि दौर हमाग?" सा गया था. 1) T ri... Y"तुमरी ग्ररनागाभारा है"
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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