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________________ अन्यरचना। मूल प्रवचनसार अन्य कैसा अपूर्व है, यह कहनेकी आवश्यकता नहीं है। और उसकी प्रशसा करनेकी हमारी शक्ति भी नही है। इसकी उत्त मता वही जान सकते हैं, जो इसके मर्मको समझनेकी शक्ति रखते हैं। * ग्रन्थकी उत्तमतापर मोहित होकर वाम्वे यूनिवर्सिटीने अपने एम् ए. के कोर्समें इसे स्थान दिया है। और इसी उत्तमतापर मुग्ध होकर कविवर वृन्दावनजीने इसका पद्यानुवाद किया है। । अनुवाद कैसा सुन्दर हुआ है, यह जाननेके लिये हम थोडेसे पद्य जो सवकी समझमे आ सकें, यहां उद्धृत कर देते है। आगम ज्ञानरहित जो मुनिवर, कायकलेश करै तिरकाल। ताको खपरभेद नहिं सूझत, आगम तीया नयन विशाल ॥ तब तह भेदज्ञान बिन कैसे, चलै शुद्ध शिवमारग चाल। सो विपरीतरीतकी धारक, “गावत तान ताल बिनु ख्याल" ॥ तत्त्वनमें रुचि परतीत जो न आई तो धौ, कहा सिद्ध होत कीन्हें मागम पठापठी। तथा परतीत प्रीत तत्वहूमें आई पै न, त्यागे रागदोष तौ तो होत है गठागठी ॥ तबै मोक्षसुख वृन्द पाय है कदापि नाहि, तातें तीनों शुद्ध गहु छांडिके हाहठी। जो तू इन तीन बिन मोक्षसुख चाहै तौ तो, "सूत न कपास करै कोरीसों लालठी" जाके शुद्ध सहज सुरूपको न ज्ञान भयो, __ और वह आगमको अच्छर रटतु है। ताके अनुसार सो पदारथको जानै सर, __धान नौ ममत्व लिये क्रियाको अस्तु है ।।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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