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________________ . जीवनचरित्र । आप कोई मत्र प्रयोग करें। (देखो पृष्ठ ११२-१३) और उनके विश्वाXससे उक्त दोनो कायोमें सफलता भी हुई थी। * अपने पिताके समान कविवर भी पद्मावती देवीके भक्त थे। सुनते हैं, उन्हें पद्मावती देवी सिद्ध भी हो गई थी। पद्मावती स्तोत्रसे उनकी पद्मावतीके विषयमे जो भक्ति थी, वह अच्छी तरहसे प्रगट होती है। निििमत्तज्ञानपर भी उन्हें विश्वास था, जिसके लिये उनकी बनाई हुई अई.. त्यासाकेवली प्रमाण है। उसमें उन्होंने लिखा है “जिनमार्गमें यह वडा निमित्त है । इसे हमने लिखा है कि, अपना वा पराया उपकार होय।" * वृन्दावनजीका जन्म संवत् १८४८ में हुआ था, और १८६३ में अअर्थात् केवल १५ वर्षकी अवस्थामें उन्होंने प्रवचनसारका पद्यानुवाद करना प्रारंभ कर दिया था। इससे पाठक जान सकते हैं कि, छुटपनहीसे । उनकी बुद्धि कैसी प्रखर थी । इसीसे हमने कहा है कि, उन्हें देवदत्त प्रतिभा थी। जो कविता नानाप्रन्थोके अभ्याससे प्राप्त होती है, वह ऐसी *अच्छी नहीं होती, जैसी देवदत्त प्रतिभा होती है। उसे बहुत अभ्यासकी आवश्यकता नहीं होती है। किंचित् कारण मिलनेसे वह प्रस्फुटित हो उठती है । महानुभाव पडित टोडरमलजीका पाडिल भी ऐसा ही सुना जाता है । कहते है कि, जिन पडितजीके पास टोडरमलजी विद्याभ्यास करते थे, वे पाठ पढ़ाते समय कहते थे, "भाई ! तुम्हे क्या पढाऊ ? जो बतलाता हू, वह तुम्हारे हृदयमें पहलेही उपस्थित देखता हू!" * यह जानकर पाठकोंको आश्चर्य होगा कि, वृन्दावनजी सवत् १८८०१ तक संस्कृत नहीं जानते थे । पडितेन्द्र जयचन्द्रजीको चिट्ठीसे (पृष्ट १३२) यह वात स्पष्ट हो जाती है। उसमें उन्होंने सारखत व्याकरणके भाषानुवाद करनेके विषयमें लिखा है कि, “आप वहीं काशीमें किसीसे सारखतचन्द्रिका पढ़ लेना । उससे वोध हो जावेगा। परन्तु इसके पहले १ उन्होंने जो ग्रन्थ बनाये है. और उनमें विशेष करके चौवीसीपाठके प्रा रंभके नामावली स्तोत्रमे संस्कृत शब्दोका जैसा समावेश किया है, उमे। * देखकर यह कोई नहीं कह सकता है कि, वे मस्कृत नहीं जानने थे। मस्कृतके पढ़े विना भाषाका ऐसा अच्छा ज्ञान सचमुच ही आश्चर्यकारक है। 个产罕容产夺产卒卒夺婆夺产卒卒于产卒卒卒个产卒卒产个产个个产容 3
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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