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________________ वृन्दावनविलास सुमुखी ( न ज ज ल ग) निजपदको जिन सांच लखा । अनुभवखाद अवाद चखा ॥ * पुदगलसों नहिं रागरुखी । तिनक: भाषत हैं सुमुखी ॥२८॥ __हरिनी ( ज ज ज ल ग) * चिदातम चिन्मयकी घरिनी । सुभाविक भावनकी परिनी। * सुवोध सुखामृतकी झरिनी । वही भवविश्रमकी हरिनी २९ भुजंगी ( य य य ल ग) अविद्या जिसे ब्रह्मवादी गही। जिसे जैनमाहीं विभावी मही। * चिदानंदको संग रंगे रही। वही भामिनीको भुजंगी कही३० । भ्रमरविलसिता ( म भ न लग) * साजे आठों दरव सु लसिता । बाजे बाजे ललित मुलसिता । * जैनी आये जजन हुलसिता। फूले फूलों भ्रमरविलसिता३१ 4 रथोद्धता (र न र ल ग) काललब्धि विन मुक्ति है नहीं । यो इकत मति धारियों कहीं। आत्मज्ञान लवसों विशुद्धतो । कीजिये सुपुरुषा शालिनी (म त त गग) जिनीवानी जक्तकी पालिनी है। जनीवानी आपदासानी जेनीवानी निर्मलाहादिनी है । मिथ्यावादी हिय मालिनी ER-PRAKARMini -Prakant
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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