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________________ वृन्दावनविलास व्यवहारपल्यके कुंडके रोमोंकी गिनती। छप्पय । ठार सुन्न बानवै इकीस, इकावन नौ लिखि । चौहत्तर सतहत्तर चौतिस, वीस लिखो सिखि ॥ आठ अधिक शत तीन, तीस छव्विस पैंतालिस । तेरह चार सुधार, बामगत लिखो अंक इस ॥ __ पैतालिस अंक प्रमान ये, रोमराशि सब जानिये । व्यवहार पल्यके कुंडमें, जिनवानी परमानिये ॥ * अर्थात्-व्यवहारपल्यके कुंडमें४१३४५२६३०३०८२०१६ ३४७७७४९५१२१९२०००००००००००००००००० रोम होते है। इन पैंतालिस अंक प्रमान रोमोंको जब सौ सौ वर्षे गये एक। एक रोम निकाले । जितने समयमें सब रोम निकलके कुंड खाली हो जाय, उतने समयको व्यवहार पन्य कहते हैं । भोगभूमिकी उत्पन्न हुई एक दिनकी भेड़के अत्यन्त सूक्ष्म रोमोंसे । * जिनसे कि छोटे फिर नहीं हो सकते हैं, व्यवहारपल्यका कुंड । * गाढावगाढ़ भरा जाता है । उन्ही रोमोंकी संख्याका यह । वर्णन है।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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