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________________ ४८ ' आवश्यक दिग्दर्शन व्रत के द्वारा पञ्चम व्रत के रूप में परिमित किए गए परिग्रह : को और अधिक परिमित किया जाता है और अहिंसा की भावना को और अधिक विराट एवं प्रबल बनाया जाता है। ___यह सप्तम व्रत अयोग्य व्यापारों का निषेध भी करता है ।. गृहस्थजीवन के लिए व्यापार धधा आवश्यक है । विना उत्पादन एवं धनार्जन के गृहस्थ की गाडी कैसे अग्रसर हो सकती है ? परन्तु व्यापार करते समय यह विचार अवश्य करणीय है कि 'यह व्यापार न्यायोचित है या नहीं ? इसमे अल्पारंभ है या महारंभ ?? अस्तु, महारभ होने के कारण वन काटना, जंगल में आग लगाना, शराब और' विष प्रादि वेचना, सरोवर तथा नदी आदि को सुखाना आदि कार्य जैन-गृहस्थ के लिए वर्जित हैं । ८-अनर्थ दण्ड विरमण व्रत मनुष्य यदि अपने जीवन को विवेक शून्य एवं प्रमत्त रखता है तो विना प्रयोजन भी हिंसा आदि कर बैठता है । मन, वाणी और शरीर को सदा जागृत रखना चाहिए और प्रत्येक क्रिया विवेक युक्त ही करनी चाहिए । अप्राप्त भोगो के लिए मन में लालसा रखना, प्राप्त भोगो की रक्षा के लिए चिन्ता करना, बुरे विचार एवं बुरे संकल्प रखना, पापकार्य के लिए परामर्श देना, हाथ और मुख अादि से अभद्र चेष्टाएँ करना, काम भोग-सम्बन्धी वार्तालाप में रस लेना, बात-बात पर अभद्र गाली देने की आदत रखना, निरर्थक हिसा कारक शस्त्रों का संग्रह करना, आवश्यकता से अधिक व्यर्थं भोग-सामग्री इकट्ठी करना, तेल तथा घी आदि के पात्र विना ढके खुले मुँह रखना; इत्यादि सब अनर्थ दण्ड है । साधक को इन सब अनर्थ दण्डो से. निवृत्त रहना चाहिए । . . . ह–सामायिक व्रत जैन साधना में सामायिक व्रत का बहुत बड़ा महत्त्व है । सामायिक का अर्थ समता है। रागद्वेषवर्द्धक संसारी प्रपंचों से अलग होकर जीवन यात्रा को निष्पाप एव पवित्र बनाना ही समता है। गृहस्थ
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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