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________________ प्रतिक्रमण पर जन-चिन्तन १६७, मञ्चुगो पदं ।' अर्थात् प्रमाद-विस्मरण-मानो मृत्यु ही है। एकएक क्षण का हिसाब रखिए, तो फिर प्रमाद को घुसने की जगह ही नहीं रहेगी । इस रीति से सारे तमोगुण को जीतने का प्रयत्न करना चाहिए । -श्राचार्य विनोबा भावे + कुछ लोग दूसरों के दोषों की ओर ही नजर फेंकते रहते हैं, लेकिन उन्हें अपने दोष देखने की फुर्सत ही नही मिलती। हमे अक्सर अपने मित्रों की बुराइयों को कहने और सुनने का जरूरत से ज्यादा शौक होता है । अपनी ओर देखना बहुत कम लोग जानते हैं। + दूसरों को बुरा बताने से हम खुद बुरे बन जाते हैं, क्योंकि हम अपने दोषों को दूर करने के बजाय उन्हें भूलने का प्रयत्न करते हैं । + सुख और शान्ति का झरना हमारे अन्दर ही है। अगर हम अपने __ मन और हृदय को पवित्र कर सके तो फिर तीर्थों में भटकने की जरूरत नहीं रहेगी। -~-श्रीमन्नारायण आजकल हम लोगों को अपने बद्ध श्रात्मा की मुक्ति की उतनी चिन्ता नहीं है, जितनी कि जगत के सुधार की । + + + हमारी सभ्यता और उसके मूल तत्त्वों का अच्छी तरह से विश्लेषण और बिना किसी सोच-सकोच के आलोचन हो जाना, आगे होने वाले सुधार के लिए अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि सचाई के साथ अपनी भूल को स्वीकार करना, सब प्रकार के सुधार का मूलारंभ है। -डा० एस० राधाकृष्णन
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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