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________________ 'प्रत्याख्यानन्यावश्यक त्यागने योग्य वस्तुएँ द्रव्य और भावरूप से दो प्रकार की हैं। , अन्न, वस्त्र आदि वस्तुएँ द्रव्य रूप है, अतः इनका त्याग द्रव्य त्याग माना जाता है । अज्ञान, मिथ्यात्व, असंयम तथा कपाय आदि वैभाविक विकार भावरूप हैं, अतः इनका त्याग भावत्याग माना गया है। द्रव्य त्याग की वास्तविक आधारभूमि भावत्याग ही है । अतएव द्रव्यत्याग तभी प्रत्याख्यान कोटि मे आता है, जबकि वह राग-द्रुप और कषायों को मन्द करने के लिए तथा ज्ञानादि सद्गुणो की प्राप्ति के लिए किया जाय। जो द्रव्य त्याग भावत्याग पूर्वक नही होता है, तथा भाव त्याग के लिए नहीं किया जाता है, उससे आत्म-गुणो का विकास किसी भी अश में और किसी भी दशा मे नही हो सकता। प्रत्युत -कभी-कभी तो मिथ्याभिमान एवं दंभ के कारण वह , अधःपतन का कारण भी बन जाता है। मानव-जीवन मे आसक्ति ही सब दुःखो का मूल कारण है । जब तक ग्रासक्ति है, तब तक किसी भी प्रकार की प्रात्मशान्ति नहीं प्रात हो सकती । भविष्य की आसक्ति को रोकने के लिए प्रत्याख्यान ही एक अमोघ उगय है। प्रत्याख्यान के द्वारा ही अाशा तृष्णा, लोभ लालच आदि विषय विकारो पर विजय प्राप्त हो सकती है। प्रतिक्रमण एव कायोत्सर्ग के द्वारा आत्म शुद्धि हो जाने के बाद पुनः आसक्ति के द्वारा पापकर्म प्रविष्ट न होने पाएँ, इसलिए प्रत्याख्यान ग्रहण किया जाता है । एक बार मकान को धूल से साफ करने के बाद दरवाजे बन्द कर देने ठीक होते हैं, ताकि फिर दुबारा धूल न आने पाए। अनुयोग द्वार सूत्र में प्रत्याख्यान का नाम गुणधारण भी पाया है । गुणधारण का अर्थ है-जनरूप गुणों को धारण करना । प्रत्याख्यान के द्वारा अात्मा, मन वचन काय को दुष्ट प्रवृत्तियो से रोक कर शुभ प्रवृत्तियो पर केन्द्रित करता है। ऐसा करने से इच्छानिरोध, तृष्णामाव, सुख शान्ति आदि अनेक सद्गुणो की प्राप्ति होती है । श्राचार्य भद्रबाहु ' आवश्यक नियुक्ति में कहते है,
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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