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________________ m मानव जीवन का महत्त्व __ में ही जीवन गुजार रहा था। उसे पता ही न था कि कोई और भी दुनिया हो सकती है। एक दिन बहुत भयंकर तेज अंधड चला और उस शैवाल मे एक जगह जरा-सा छेद हो गया। देवयोग से वह कछुवा उस समय वही छेद के नीचे गर्दन लम्बी कर रहा था तो उसने सहसा देखा कि ऊपर आकाश चॉद, नक्षत्र और अनेक कोटि तारापो की ज्योति से जगमग-जगमग कर रहा है। कछुवा आनंद-विभोर हो उठा। उसे अपने जीवन मे यह दृश्य देखने का पहला ही अवसर मिला था। वह प्रसन्न होकर अपने साथियो के पास दौडा गया कि 'पाओ, मैं तुम्हें एक नई दुनिया का सुन्दर दृश्य दिखाऊँ। वह दुनिया हमसे ऊपर है, 'रत्नो से जडी हुई, जगमग जगमग करती! सब साथी दौड कर पाए, परन्तु इतने में ही वह छेद बन्द हो चुका था और शैवाल का अखण्ड आवरण पुनः अपने पहले के रूप में तन गया था। वह कछुवा बहुत देर तक इधर-उधर टक्कर मारता रहा, परन्तु कुछ भी न दिखा सका ! साथी हंसते हुए चले गए कि मालूम होता है, तुमने कोई स्वप्न देख लिया है ! क्या उस कछुवे को पुनः छेद मिल सकता है, ताकि वह चॉद। और तारो से जगमगाता आकाश-लोक अपने साथियो को दिखा सके ? यह मब हो सकता है, परन्तु नर-जन्म खोने के बाद पुनः उसका मिलना सरल नहीं है।" "स्वयंभूरमण समुद्र सबसे बडा समुद्र माना गया है, असंख्यात हजार योजन का लंबा-चौडा। पूर्व दिशा के किनारे पर एक जूना पानी में छोड दिया जाय, और दूसरी तरफ पश्चिम के किनारे पर एक कीली । क्या कभी हवा के झोंकों से लहरों पर तैरती हुई कीली जूए के छेद मे अपने आप आकर लग सकती है ? संभव है यह अघटित घटना घटित हो जाय ! परन्तु एक बार खोने के बाद मनुष्य जन्म का फिर प्राप्त होना अत्यन्त कठिन है !" . "कल्पना करो कि एक देवता पत्थर के स्तम्भ को पीस कर आटे की तरह चूर्ण बना दे और उसे बॉस की नली में डालकर मेरु पर्वत की
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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