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________________ सामायिक आवश्यक घर के अन्दर घुस आते हैं और कुछ घर के बाहर घुसने की तैयारी में खड़े रहते हैं । ऐसी स्थिति में गृहस्थ का क्या कर्तव्य हो जाता है ? वह अन्दर घुसे हुए चोरों से लड़े या पहले घर का दरवाजा बंद करे ? यदि पहले दरवाजा बंद न करके सीधा चोरों से उलझ जाए तो बाहर खड़े चोरों का दल अन्दर आ सकता है, इस प्रकार चोरों की शक्ति घटने की अपेक्षा बढ़ती ही जाएगी। समझदारी का काम यह है कि पहले दरवाजा बन्द करके बाहर के चोरों को अन्दर आने से रोका जाय और फिर अन्दर के चोरों से संघर्ष किया जाय । संयम, भावी पापाश्रव को रोकता है और तपश्चरण पहले के सचिन कर्मों को क्षय करता है। जहाँ दूसरे धर्म केवल तप पर बल देते हैं वहां जैन-धर्म संयम को अधिक महत्त्व देता है। जैनधम की सामायिक वह संयम की साधना है, जो भविष्य में आनेवाले पापाश्रव को रोक कर फिर अन्दर मे कर्मों से लड़ने की कला है। यह युद्ध-कला ही वस्तुतः मुक्ति के साम्राज्य पर अधिकार करा सकती है। सामायिक का बहुत बड़ा महत्त्व है। वह आवश्यक का प्रादिमगल है । अखिल मंगल का मूल निर्वाण है, और यह निर्वाण सामायिक के द्वारा ही प्राप्त होता है। अतः सामायिक मङ्गल है। प्राचार्य जिनदास कहते हैं-'आदिमंगलं सामाइयज्मयणं ।'"सव मंगलनिहाणं निव्वा पाविहितित्तिकाऊण सामाइयज्मयणं मंगलं भवति ।-आवश्यक चूर्णि। सामायिक विश्व के सब प्राणियों के प्रति समता की साधना है। और यह समता ही वस्तुतः सब मंगलों का निधान है। अस्तु, समभाव की दृष्टि से भी सामायिक श्रादिमंगल है। 'जो य समनावो सो कह सव्वमंगलनिधा ण भविस्सति -आवश्यक चूर्णि । सामायिक की उत्कृष्ट साधना का तो कहना ही क्या है ? यदि जघन्यरूर से भी सामायिक रूप समभाव का स्पर्श कर लिया जाय तो साधक संसार का अन्त कर देता है, सात आठ जन्म से अधिक जन्म नहीं ग्रहण करता है। 'सत्तभवग्गहणाई पुण नाइक्कमइ ।'
SR No.010715
Book TitleAavashyak Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1950
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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