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________________ 101 उदयविवागो विविहो कम्माण वण्णिदो जिरणवरेहि । हु ते मज्झ सहावा जाणगभावो दु अहमेक्को ॥ 102 एवं सम्मादिट्ठी अप्पाण मुरादि जाणगसहाव । उदय कम्मविवाग च मुयदि तच्च वियाणंतो ॥ 103 परमाणुमेत्तय पि हु रागादीणं तु विज्जदे जस्स । ए वि सो जारणदि अप्पारण्य तु सवागमधरो वि ॥ 104 अप्पारणमयाणतो अणप्पय चावि सो प्रयाणतो । किह होदि सम्मदिट्ठी जीवाजीवे अयाणंतो ॥ 105 गाणगुणेरण विहीणा एद तु पद बहू वि रण लहंति । त गिण्ह रिणयदमेद जदि इच्छसि कम्मपरिमॉक्खं ॥ 106 एदम्हि रदो पिच्चं सतुठो होहि रिगच्चमेदम्हि । एदेण होहि तित्तो होहिदि तुह उत्तमं सोक्खं ॥ 107 मज्भं परिग्गहो जदि तदो अहमजीवदं तु गच्छे ज्ज । पादेव अह जम्हा तम्हा ण परिग्गहो मज्म ॥ 36 ] समयसार
SR No.010711
Book TitleSamaysara Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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