SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किन्तु पूर्णता का अनुभवी व्यक्ति वुद्धि के चातुर्य को त्यागकर अनुभव की सीढी पर चढ जाता है। यहाँ हो पात्मानुभव को अखण्डता, अनन्तता और द्वन्द्वातोतता प्रकट होतो है। समयसार चयनिका के उपर्युक्त विपय-विवेचन से स्पष्ट है कि समयसार मे जीवन के आध्यत्मिक पक्ष की सूक्ष्म अभिव्यक्ति हुई है। इसी विशेषता से प्रभावित होकर यह चयन (समयसारचयनिका) पाठको के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है। गाथाओ के हिन्दी अनुवाद को मूलानुगामी वनाने का प्रयास किया गया है। यह दृष्टि रही है कि अनुवाद पढने से ही शब्दो की विभक्तियां एव उनके अर्थ समझ मे आ जाएँ । अनुवाद को प्रवाहमय बनाने की भी इच्छा रही है। कहाँ तक सफलता मिली है इसको तो पाठक हो वता सकेंगे। अनुवाद के अतिरिक्त गाथाभो का व्याकरणिक विश्लेषण भी प्रस्तुत किया गया है। इस विश्लेषण में जिन सकेतो का प्रयोग किया गया है, उनको सकेत सूची में देखकर समझा जा सकता है। यह आशा की जाती है कि चयनिका के अध्ययन से प्राकृत को व्यवस्थित रूप से सोखने मे सहायता मिलेगी तया व्याकरण के विभिन्न नियम सहज मे ही सोखे जा सकेंगे। यह सर्वविदित है कि किसी भी भाषा को सीखने के लिए व्याकरण का जान अत्यावश्यक है। प्रस्तुत गाथाएं एव उनके व्याकरणिक विश्लेषण से व्याकरण के साथ-साथ शब्दो के प्रयोग भो सोखने में मदद मिलेगी। शब्दों की व्याकरण और उनका अर्थपूर्ण प्रयोग दोनो ही भाषा सीखने के प्रावार होते हैं। अनुवाद एवं व्याकरणिक विश्लेषण जैसा भी बन पाया है पाठको के समक्ष हैं। पाठको के सुभाव मेरे लिए बहुत ही काम के होगे। XXVI ] समयसार
SR No.010711
Book TitleSamaysara Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy