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________________ ८० 1 वाह्य क्रियाकाण्ड तभी सजीव होता है जब उसके साथ आन्तरिक भावना का सम्मिश्रण हो । अगर वह न हुई तो क्रियाकाण्ड मात्र दिखावा होकर रह जाता है । वह स्वीपर वंचना का साधन भी बन सकता है । अतएव साधना के जो दो भेद कहे गए हैं, वे केवल उसके दो रूप हैं, स्वतंत्र दो पक्ष नहीं हैं । अपरिचित पथ पर चलने वाला पथिक पहले चले पथिकों के पदचिन्ह देखकर आगे बढ़ता है जिससे वह भटक न जाय । साधना मार्ग के बटोही को भी ऐसा ही करना चाहिए । पूर्वकालीन साधमा के मार्ग पर चले हुए महापुरुषों के अनुभवों का लाभ हमें उठाना चाहिए, वीतरागों का स्मरण हमें प्रेरणा देता है, स्फूति देता है, आत्मविश्वास जगाता है और सही मार्ग से इधर-उधर भटकने से बचाता है । आदर्श महापुरुषों की शिक्षाओं से हमारे जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान होता है, उलझनें सुलझ जाती हैं । आचार मार्ग में भी महापुरुषों के वचनों से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं । भूधर जी महाराज ऐसे ही महापुरुषों में से एक थे। भूधर जी महाराज विजयादशमी को ही इस धरती पर अवतरित हुए और विजयादशमी के दिन ही स्वर्गवासी हुए । यह एक विस्मय कारक घटना है, परन्तु महापुरुषों के जीवन के वास्तविक रहस्य को समझना बहुत कठिन है। ___मारवाड़ के प्रसिद्ध नगर सोजत में धन्ना जी महाराज का उपदेश सुनकर उनके चित्त में विराग उत्पन्न हुआ और वे उन्हीं के पास दीक्षित हो गए। दीक्षित होने के पश्चात् उन्होंने संयम और तप का मार्ग ग्रहण किया। अपने अन्दर साधना की ज्योति जगाई और वह ज्योति उन्हीं तक सीमित नहीं रही । अन्दर जव प्रकाश उत्पन्न होता है तो उसकी कतिपय किरणे बाहर प्रस्फुटित हुए बिना नहीं रहतीं । वाहर निकल कर वे किरणे कितने ही लोगों का पथ प्रशस्त करती हैं । भूधरजी महाराज के अन्तरतर में आलोक का जो पुंज उद्भूत हुया, उससे सहस्रों नर-नारियों को मार्गदर्शन मिला । उनकी वारणी-गंगा में अवगाहन करके न जाने कितने लोगों ने अपने मन का मैल धोया।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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