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________________ ७४ ] . . प्रतिकूल परीषह को सहन करना वीरता है तो अनुकूल परीपह को सहन करना महावीरता है। मनुष्य कष्ट झेल सकता है मगर प्रलोभन को जीतना कठिन होता है । कष्ट की अपेक्षा प्रलोभन के सामने गिर जाने की अधिक सम्भावना रहती है। . सम्भूति विजय के चार शिष्य उग्र साधना के लिए निकले थे। उनमें से तीन के सामने प्रतिकूल परीषह थे और चौथे स्थूलभद्र के सामने अनुकूल परीषह । प्रतिकूल परीषहों को जीतने वाले धन्य हुए तो अनुकूल परीषह को जीतने वाला अतिधन्य कहलाया। स्थूलभद्र के कार्य को 'दुष्करं अति दुष्करम्' कह कर सराहा गया। सारी मुनि मंडली ने भी उनकी सराहना की। तीनों मुनियों ने स्थूलभद्र की प्रशंसा सुनी। .. जौहरी नगीनों का मूल्यांकन उनकी चमक-दमक आदि की दृष्टि से करता है । विभिन्न नगीनों की कीमत में अन्तर होता है। गुरु सम्भूति विजय ... जौहरी के समान थे और साधक मुनि नगीने के समान । यदि गुरु साधनाओं का सही मूल्यांकन न करे तो शिष्यों पर ठीक प्रभाव न पड़े। जिस गुणी में जिस-कोटि का गुण हो, उसकी उसी रूप में प्रशंसा करना दर्शनाचार का पोषण करना है। . ..: गुरु के लिए सभी शिष्य समान थे। उनके मन में किसी के प्रति पक्षपात नहीं था। फिर भी स्थूलभद्र की उन्होंने विशेष प्रशंसा की। इसका कारण उनकी साधना की उत्कृष्टता ही समझना चाहिए । निद्रा, भूख, प्यास, आदि को जीतना उतना कठिन नहीं है जितना काम क्रोध आदि पर विजय प्राप्त करना कठिन है। अध्यापक अपने शिष्यों में स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना उत्पन्न कर देता है जिससे अध्ययन में विशेष प्रगति हो, अध्यात्म मार्ग में भी इसी प्रकार प्रतियोगिता की सुयोजना की जाती है ।. ...: -: तीनों मुनियों को स्थूलभद्र की विशिष्ट प्रशंसा सुनकर विचार हुआ-हम लोगों ने प्राणों का ममत्व त्याग कर जीवन को संकट में डाल कर
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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