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________________ प्राप्त करने की उतनी आवश्यकता शायद सिंह गुफा वाले और वेश्या के भवन वाले मुनि को न रही हो। तीनों मुनि वर्षाकाल व्यतीत होने पर गुरु के चरणों में उपस्थित होते हैं और दोर्य काल के पश्चात् गुरु का दर्शन करके आनन्द का अनुभव करते हैं । कुए की पाल वाले, सिंह की गुफा वाले और नाग की वामी वाले, तीनों मुनियों को उनकी सफल साधना के लिए गुरु जी धन्यवाद देते हैं। . तीनों मुनि गुरुचरणों में प्रणत हो अपना-अपना वृत्तान्त निवेदन करने के लिए उत्सुक हैं। तीनों को अपनी साधना से सन्तोष है। हम अपनी साधना के गुरु संभूतिविजय को प्रसन्न कर सकेंगे, उनके मन में ऐसा विश्वास था । गुरुजी अपने शिष्यों की प्रतीक्षा उसी प्रकार कर रहे थे जैसे पिता विदेश से विद्याध्ययन करके आने वाले पुत्र की प्रतीक्षा करता है । ,गच्छ के अन्य मुनि भी उनकी तपस्या का वृत्तान्त सुनने के लिए आतुर हो रहे थे, जैसे किसी की लम्बी यात्रा का विवरण सुनने के लिए उसके स्वजन-परिजन आतुर रहते हैं। उक्त तीनों मुनि जो पहले आ पहुँचे थे। उन्होंने अपना वृत्तान्त कह सुनाया और अन्त में कहा-साधना थी तो बड़ी कठोर, परन्तु आपके अनुग्रह से वह निभ गई । यह आपकी कृपा का ही फल है। आपकी आज्ञा का सहारा लेकर ही हम सफल हो सके। . महामुनि ने उन्हें धन्य कहा और उनके दुष्कर कार्य के लिए उनकी सराहना की। गुरु से प्रशंसा प्राप्त करके तीनों मुनि गद्गद् होगए और अपने जीवन को कृतार्थ समझने लगे। बीसों कोस से आया अश्व जैसे स्वामी की प्यार भरी थपकियों से सन्तुष्ट हो जाता है, वैसे ही ये तीनों मुनि भी सन्तुष्ट कुछ समय पश्चात् स्थूलभद्र भी गुरु के श्री चरणों में उपस्थित हुए । यथा योग्य प्रगति के पश्चात् उन्होंने भी अपना वृत्तान्त निवेदन किया।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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