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________________ - जब व्यक्तितंत्र (राजतंत्र) में भी ऐसी स्थिति थी तब आज तो प्रजातन्त्र है । प्रजा के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि भारत का शासन चला रहे हैं । फिर भी यदि शासन हिंसा को बढ़ावा दे तो यह प्रजा की कमजोरी या लापरवाही का ही फल है। अगर प्रजा अपनी भावना पर बल दे तो शासकों के आसन डोले बिना नहीं रह सकते । जनभावना के सामने बड़े से बड़े प्रभावशाली शासक को भी झुकना पड़ता है। जनता की मांग के सामने कोई शासक खड़ा नहीं रह सकता। कई कानूनों, यहां तक कि संविधान में भी. परिवर्तन करना पड़ता है। . . . . .. . ... राजनीति को वारांगना की उपमा दी गई है। वह साम दाम से काम निकालती है। अनेकों वार अनेक आश्वासन देकर जनता की उग्र भावना को शान्त कर दिया जाता है, मगर अन्ततः वे आश्वासन कोरे आश्वासन ही सिद्ध होते हैं। आश्वासन देकर शासन यदि तदनुसार कार्य न करे तो संगठित बल से विरोध किया जाता है और तब शासन को झुकना पड़ता है। . . सारे देश के धर्मप्रिय विचारक अहिंसा के पक्षपाती हैं । वैष्णव समाज, ब्रह्म,समाज, जैन समाज और बौद्ध समाज, सभी अंहिंसा पर विश्वास रखते हैं । सब के संगठित विरोध के कारण दिल्ली में, रोहतक रोड पर बनने वाला कल्लखाना अाखिर रुक ही गया। ___ मानव पशुओं की हत्या करके उन्हें उदरस्थ कर लेता है, इससे बढ़ कर नृशंसता और क्या हो सकती है ? आखिर उन मूक प्राणियों का अपराध क्या है ? क्या उन्हें अपना जीवन प्रिय नहीं हैं ? क्या वे अपने प्राणों को मनुष्य की भांति ही प्यार नहीं करते ? जिस धरती पर मनुष्य ने जन्म लिया है, उसी धरती पर उन पशुओं का भी जन्म हुआ है। ऐसी स्थिति में क्या पशुओं का उस पर अधिकार नहीं है ? धरती का पट्टा किसने लिख दिया है मनुष्य के नाम ? किसने उन्हें धरती पर जीने के अधिकार से वंचित किया है ? हां मनुष्य सबल है और पशु निर्बल, क्या इसी कारण मनुष्य को यह अधिकार है कि वह पशुओं की हत्या करे ? अगर यही न्याय मान्य कर लिया जाय तो ___ जिसकी लाठी उसकी भैंस कहावत चरितार्थ होगी। फिर सबल मनुष्य निर्बल
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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