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________________ [४१७ • की पूर्णता है। आत्मप्रदेशों का स्पन्दन या कम्पन जब समाप्त हो जाय तभी. सामायिक की पूर्णता समझनी चाहिए। इसे पागम की भाषा में अयोगी दशा की प्राप्ति कहते हैं । .......... .:.:. आज केवलज्ञानी इस क्षेत्र में विद्यमान नहीं है, श्रुतकेवली भी नहीं है। किन्तु महापुरुषों की श्रु ताराधना के फलस्वरूप उनकी वाणी का कुछ अंश हमें सुलभ है । इसीके द्वारा हम उनकी परोक्ष उपासना का लाभ प्राप्त कर सकते ... है। इसके लिए स्वाध्याय करना आवश्यक है। स्वाध्याय चित्त की स्थिरता . .. और पवित्रता के लिए भी सर्वोत्तम उपाय हैं। ....जीवन को ऊँचा उठाने का अमोघ उपाय श्र ताराधन है। यदि व्रत. .. : विकृत होता हो, उसमें कमजोरी आ रही हो तो स्वाध्याय की शरण लेना : . चाहिए । स्वाध्याय से बल की वृद्धि होगी, आनन्द की अनुभूति और नूतन ज्योति की प्राप्ति होगी। ... आनन्द ने साधना द्वारा पन्द्रह वर्ष के पश्चात् साधुजीवन की भूमिका प्राप्त करली । वास्तव में साधना एक अनमोल मरिण है जिससे मानव की आत्मिक दरिद्रता दूर की जा सकती है । साधना के क्रम और सही पथ को .. विस्मृत न किया जाय और उसे रूढ़ि मात्र न बना दिया जायः, साधना सजीव : हो, प्राणवान् हो और विवेक की पृष्ठ भूमि में की जाय तभी उससे वास्तविक -- लाभ उठाया जा सकता है । अन्यथा मणिधर होते हुए भी अंधकार में भटकने । - के समान होगा। जब साधना के द्वारा आत्मा सुसंस्कृत बनता है तो उसमें ज्ञान । -: की ज्योति जागृत हो जाती हैः, जीवन ऊँचा उठता है और ऐसा व्यक्ति अपने प्रभाव.एवं आदर्श से समाज को भी ऊँचा उठा देता है। . : जीव मात्र में राग और द्वष के जो गहरे संस्कार पड़े हैं उनके प्रभाव से किसी वस्तु को प्रेम की दृष्टि से और किसी को दोष की दृष्टि से देखा जाता... है। जिस वस्तु को एक मनुष्य राग की दृष्टि से देखता है, उसी को दूसरा द्वष.. -
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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