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________________ को ग्रहण करने वाले पर्याप्त पात्र नहीं मिलते। इसका कारण स्वाध्यायविषयक रुचि का मन्द पड़ जाना है। श्रुतवल की मन्दता वाले श्रोता स्वाध्याय के महत्व को नहीं समझ पाते। ....। सम्यक्त्व में श्रद्धा का बल निहित होता है। भरत को यह बल प्राप्त .. था। चारित्रसामायिक का बल उसे प्राप्त नहीं था तथापि श्रृतसामायिक का बल : ... होने से उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो सका । यही नहीं, भरत की पाठ पीड़ियां महल . में निवास करती हुई भी मुक्ति पा गई। इसका कारण भी सम्यक्त्व एवं श्रू तसामायिक का बल था। - इसका आशय यह न समझ लें कि भरत और उनकी सन्तान ने चारित्र ... के बिना ही म.क्ष प्राप्त कर लिया। नहीं, चारित्र के अभाव में मोक्ष कदापिः । संभव नहीं है । इस कथन का आशय यह है कि सम्यक्त्व और श्रुतसामायिक :का प्रबल बल होने पर बाह्य क्रिया काण्ड रूप व्यवहारचारित्र के बिना भी . स्वात्मरमण रूप निश्चय चारित्र प्राप्त हो सकता है । सामान्य मनुष्य कामक्रोध आदि की विविध तरंगों में वहता-उछलता रहता है। भरत भारतवर्ष के छहों खंडों के अधिपति होकर भी इन तरंगों के प्रभाव से प्रभावित नहीं हुए। घर का आनुवंशिक संस्कार भी और मनुष्य के अतीतकालिक संस्कार भी - ऐसी जगह वह काम कर जाते हैं जो कालेज की शिक्षा या शास्त्राध्ययन से भी .. प्राप्त नहीं हो सकते। पी-एच० डी० की उच्च उपाधि प्राप्त कर लेने वाले व्यक्ति का दिमाग भले ही गुमराह हो जायं परन्तु सुसंस्कृत व्यक्ति गुमराह नहीं हो सकता। भरत अपने अन्तिम जीवन को निर्वाण के योग्य बना सके, इसका प्रधान कारणः श्रत और सम्यक्त्व है। ............. सामायिक के दो रूप है-साधना और सिद्धि। अतः सामायिक से साधना संकल्प का प्रारंभ और उदय होता है। वह विकास पाकर ज्ञान और चारित्र . : के द्वारा आत्मा में स्थिरता उत्पन्न करता है। यह आत्मस्थिरता ही सामायिक ...
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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