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________________ [ ३७६ पीड़ितों की सहायता की जाय, सेवा की जाय और उनकी पीड़ा का निवारण करने में कोई कसर न रक्खी जाय ! .. सत्पुरुष सदैव स्मरण रखता है कि मानव जाति एक और अखण्ड है ... तथा पारस्परिक सहाय एवं सोहार्द से ही शान्ति की स्थापना की जा सकती .. है । मनुष्य को चाहिए कि वह दूसरों के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख माने - और सब के प्रति यथोचित सहानुभूति रक्खे। लोग धर्म के वास्तविक स्वरूप और उद्देश्य को नहीं समझते । इसी . कारण बहुतों की ऐसी धारणा बन गई है कि धर्म का सम्बन्ध इस लोक और इस जीवन के साथ नहीं है वह तो परलोक और जन्मान्तर का विषय है। किन्तु ... - यह धारणा भ्रमपूर्ण है । धर्म का दायरा बहुत विशाल है । धर्म में उन सबं कर्तव्यों का समावेश है जो व्यक्ति और समाज के वास्तविक मंगल के लिए हैं, . : जिनसे जगत् में शान्ति एवं सुख का प्रसार होता है । धर्म मनुष्य के भीतर घुसे ... हुए पिशाच को हटा कर उसमें देवत्व को जागृत करता है । वह भूतल पर स्वर्ग - को उतारने की विधि बतलाता है । धर्म कुटुम्ब, ग्राम, नगर, देश और अखिल .. विश्व में सुखद वातावरण के निर्माण का प्रयत्न करता है । आज दुनियां में यदि ... कुछ शिव, सुन्दर एवं श्रेयस्कर है तो वह धर्म की ही मूल्यवान् देन है। :: " धर्म की शिक्षा अगर सही तरीके से दी जाय तो किसी प्रकार के संघर्ष, दौर्मनस्य या विग्रह को अवकाश नहीं रह सकता । थोड़ी देर के लिए कल्पना.. ' कीजिए उस विश्व की जिसमें प्रत्येक मनुष्य दूसरों को अपना सखा समझता हो, .. ... कोई किसी को पीड़ा न पहुँचाती हो बल्कि परपीड़ा को अपनी ही पीड़ा मान कर ... उसके प्रतिकार के लिए सचेष्ट रहता हो, प्रत्येक व्यक्ति संयममय जीवन बना - कर अपने सद्गुणों के विकास में निरत हो और अपनी-रायी मुक्ति के लिए.. यत्नशील हो । ऐसा विश्व कितना- सुन्दर, कितना सुखद और कितनाः .. सुहावना होगा ! धर्म ऐसे ही विश्व के निर्माण की प्रेरणा युग-युग से करता आ रहा है ! . . . ...
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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