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________________ ३६८ } . गृहस्थ श्रान्नद को बाहरी कारण मिला । परम प्रकृष्ट पुण्योदय से वह .. साक्षात् तीर्थ कर देव का सान्निध्य प्राप्त कर सका । उसका अन्तःकरण पहले से कुछ बना हुआ था और कुछ भगवान् महावीर ने तैयार कर दिया । भगवान् की देशना का उस पर गहरा प्रभाव पड़ा। अन्तःकरण वस्तुतः भीतर की योग्यता है । उस योग्यता को चमकाने . वाला बाह्य कारण है। आन्तरिक योग्यता के अभाव में बाह्य कारण अकिचित्कर होता है। यदि मिट्टी में घर निर्माण करने की अर्थान् घटपर्याय के रूप में परिणत होने की ये ग्यता नहीं है तो लीद, पानी, कुंभार, चाक आदि विद्यमान :: रहने पर भी घट नहीं बनेगा। कुंभार चाक को घुमाघुमा कर हैरान हो जाएगा। ___मगर उसे सफलता प्राप्त न होगी। चाक में कोई दोष नहीं है, कुंभार के प्रयत्न . में भी कोई कमी नहीं है, मगर मिट्टी में वह योग्यता नहीं है । आगरे के पास की मिट्टी से जैसा अच्छा घड़ा बनेगा, वैसा राजस्थान की मिट्टी से नहीं । यह :नित्य देखी जाने वाली वस्तु का उदाहरण है। . अपने विशुद्ध स्वरूप को प्राप्त करना आत्मा का मूल कार्य है । द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा सत्संग और स्वाध्याय निमित्त कारण हैं । इनसे आत्मा में शक्ति प्रा " "- . . . . ... . .. तार कमजोर हो गया था। वह गिरने वाला ही था कि उस पर कौवा बैठ. गया। लोग कौवा को निमित्त कहने लगे। किन्तु तार में यदि कच्चापन न होता तो कौवा क्या कर सकता था ? सूरदास तथा भक्त विल्वमंगल को क्या वेश्या : चिन्तामणि जगा सकी थी ? वास्तव में वैराग्य की भूमिका उनके हृदय में कमिका उनके हृदय में बन .. चुकी थी, रही-सही कमज़ोरी चिन्तामणि की उक्ति ने पूरी कर दी। सामान्यतः विल्वमंगल और सूरदास के वैराग्य के लिए लोग चिन्तामणि को निमित्त मानते हैं परन्तु तथ्य यह है कि प्रात्मा में यदि थोड़ी जागृति हो तो सामान्य निमित्त : ..मिलने से भी पूरी जाति उत्पन्न हो जाती है। .. .
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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