SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .. ... .... ..... [२३ । सकते । सत्य का निर्वाह भी निर्बल नहीं कर सकता । अहिंसा और सत्य के .. पालन के लिए मनोबल और धैर्य की आवश्यकता होती है । इन्हें उत्पन्न करने .. — वाला और सुरक्षित रखने वाला ब्रह्मचर्य है। .... . .. जगत् में जितने भी महापुरुष हुए हैं, सभी ने एक स्वर से ब्रह्मचर्य की महिमा का गान किया है। ब्रह्मचर्य की साधना में अद्भुत प्रभाव निहित है । देवता भी ब्रह्मचारी के चरणों में प्रणाम करके अपने को कृतार्थ मानते - ब्रह्मचर्य ऐसी साधना है कि उसकी रक्षा के लिये कतिपय नियमों .. का पालन करना आवश्यक है। धान्य की रक्षा के लिए जैसे वाड़ की आवश्यकता _ होती है, उसी प्रकार ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए भी वारें आवश्यक है । शास्त्रों __ में ब्रह्मचर्य के सहायक एवं रक्षक नियमों की संख्या नौ बतलाई गई है। .. . जहां स्त्री, हिजड़ा और पशु निवास करते हों, वहां ब्रह्मचारी पुरुष । को नहीं रहना चाहिए । ब्रह्मचारिणी स्त्री के लिए भी यहीं नियम जाति परिवतन के साथ लागू होता है। इसी प्रकार मात्रा से अधिक भोजन करना; उत्तेजक भोजन करना. कामुकता वर्धक बातें करना विभूषा-शृंगार करना - और इन्द्रियों के विषयों में आसक्ति धारण करना, इत्यादि ऐसी बातें हैं जिन । से ब्रह्मचारो को सदैव बचते रहना चाहिए। जो इनसे बचता रहता है, उसके - ब्रह्मचर्य व्रत को पांच नहीं पाती। जिस कारण से भी वासना भड़कती - हो, उससे दूर रहना ब्रह्मचारी के लिए आवश्यक है । - प्रत्येक मनुष्य स्थूलभद्र और विजय सेठ नहीं बन सकता । स्थूलभद्र का कथानक आपने सुना है । विजय सेठ भी एक महान् सत्त्वशाली गृहस्थ थे, जिनकी ब्रह्मचर्य साधना बड़े से बड़े योगी की साधना से समता कर सकती है। .. विवाह होने से पूर्व ही उन्होंने कृष्ण पक्ष में ब्रह्मचर्य पालने की प्रतिज्ञा अंगीकार की थी। उनकी पत्नी विजया ने भी विवाह से पूर्व ही एक पक्ष--शुक्ल ' पक्ष में ब्रह्मचर्य पालन की प्रतिज्ञा ली थी। संयोग वश दोनों विवाह के बन्धन में आवद्ध हो गए । दोनों एक साथ रहे फिर भी अपना व्रत अखंडित रख सके। माता को विलगाव मालूम न हो और शुद्धवासना विहीन प्रेम भी
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy