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________________ ३०४] . प्राचार्य को जब इस घटना का पता चला तब एक नयी विचार-धारा . उनके मानस में उत्पन्न हुई। उनका समुद्र के समान विशाल और गम्भीर हृदयः .. भी क्षुब्ध हो उठा। वे सोचने लगे-मैंने बालक को तलवार पकड़ा दी। स्थूलभद्र में जिस ज्ञान की पात्रता नहीं थी, वह ज्ञान उन्हें दे दिया। अपात्रगत ज्ञान अनर्थकारी होता है । स्थूलभद्र अपनी साधना की सफलता को : प्रकट करने के लोभ का संवरण न कर सके। वे अपनी भगिनियों के समक्ष अपनी विशिष्टता को प्रदर्शित करने के मोह को न जीत सके। स्थूलभद्र की मानसिक स्थिति प्राचार्य भद्रबाहु से छिपी न रही। वे उनको प्रात्म प्रकाशन वृत्ति से आहत हुए । स्थूलभद्र की इस स्खलना से. उनका गिरि सदृश हृदय भी कम्पित हो गया । वह सोचने लगे-साधु का जीवन अखण्ड संयममय होता है । यदि समुद्र की जलराशि भी छलकने लगी और उसमें भी बाढ़ आने लगी तो अन्य जलाशयों जा क्या हाल होगा? साधु के लिए तो अपेक्षित है कि जो कुछ वह जानता है उसे गोपन कर के रक्खें और कोई न जान सके कि वह कितना जानता है । मगर स्थूलभद्र में भी यह गोपनक्षमता नहीं। अभी क्या हुआ है ? अागे तो बड़ी अद्भुत विद्यएँ आने वाली हैं। मगर स्थूलभद्र को क्या दोष दिया जाय, यह काल का विषम प्रभाव है। आगे और अधिक बुरा समय आने वाला है। .. गोपनीय विद्या के लिए सुपात्र होना चाहिए । अपात्र को देना ऐसा हो .. . है जैसे वच्चे वे हाथ में नंगी तलवार या गोली-भरा रिवाल्वर देना। इससे स्व पर दोनों की हानि होतो है-विद्यावान् की भी तथा दूसरों की भी अतएव गोपनीय विद्याओं को अत्यन्त सुरक्षित रक्खा जाता है । आज का विज्ञान अपात्रों के हाथ में पड़ कर जगत को प्रलय की ओर ले जा रहा हैं। अनार्यो . . के हाथ लगा भौतिक विज्ञान विध्वंसक कार्यों में प्रयुक्त हो रहा है । भौतिक तत्त्व के समान अगर कुछ अद्भुत विद्याएँ भी उन्हें मिलजाए तो अतीव हानिजनक सिद्ध हो सकती हैं । अतएव पात्र देख कर ही विद्या दी जानी चाहिए। ...... अपात्र विद्या प्राप्त कर के या तो उसे अपना पेट भरने का साधन बना लेगा या ..
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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